उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में भारतीय राष्ट्रवाद के विकास की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए ...
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19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारतीयों में राष्ट्रीय राजनीतिक चेतना का विकास बहुत तीव्र गति से हुआ. फलस्वरूप भारत में एक संगठित राष्ट्रीय आन्दोलन का सूत्रपात हुआ. भारतीय राष्ट्रवाद कुछ सीमा तक उपनिवेशवादी नीतियों तथा उन नीतियों से उत्पन्न भारतीय प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप ही उभरा था. पाश्चात्य शिक्षा का विस्तार, मध्यवर्ग का उदय, रेलवे का विस्तार तथा सामाजिक-धार्मिक आन्दोलनों ने राष्ट्रवाद की भावना के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई.
राष्ट्रवाद के उदय के कारण
भारत में राष्ट्रीय आन्दोलन तथा राष्ट्रवाद का उदय अनेक कारणों तथा परिस्थितियों का परिणाम था, जिन्हें निम्न रूपों में देखा जा सकता है –
औपनिवेशिक प्रशासन
ब्रिटिश शासन ने भारतीय ग्रामीण उद्योग और कृषि को नष्ट कर दिया था और ग्रामीण अर्थव्यस्था को औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था में बदल कर रख दिया था. इसके परिणामस्वरूप लोगों ब्रिटिश शासन प्रति आक्रोश की भावना का उदय हुआ. ब्रिटिश शासन द्वारा अपने हितों की पूर्ति के उद्देश्य से किया गया रेलवे का विस्तार तथा डाक एवं प्रशासनिक व्यवस्था के चलते देश के विभिन्न भागों में रह रहे लोगों और नेताओं के मध्य संपर्क संभव हो गया जिससे राष्ट्रवाद को बल मिला.
ब्रिटिश शासन का भारतीय अर्थव्यवस्था पर विनाशकारी प्रभाव प्लासी और बक्सर के युद्ध के साथ आरम्भ हुआ जोकि बाद में बढ़ता ही गया. अंग्रेजों की पक्षपातपूर्ण आर्थिक तथा राजस्व नीति की प्रतिक्रिया के रूप में आर्थिक राष्ट्रवाद का उदय हुआ.
भारतीय पुनर्जागरण
भारतीय पुनर्जागरण ने भी अपने दो स्वरूपों में राष्ट्रवाद की भावना को प्रश्रय दिया. पहला, उसने भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों, अनैतिकताओं, अवांछनीयताओं एवं रूढ़ियों मुक्ति का मार्ग दिखाया और दूसरा, श्वेतों के अधिभार (White Man’s Burden Theory) के विपरीत भारतीय संस्कृति के गौरव को पुनर्स्थापित किया. इसके परिणामस्वरूप देश में एक नवीन राष्ट्रीय चेतना की भावना को बल मिला. डलहौजी के कार्यकाल में रेलवे, टेलीग्राफी और आधुनिक डाक व्यवस्था आदि के विकास से भारत की परिवहन एवं संचार व्यवस्था में व्यापक बदलाव आया था. वैसे इन बदलावों के पीछे अंग्रेजों के औपनिवेशिक हित ही छिपे थे.
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