Social Sciences, asked by Hotspot01, 5 months ago

उन्नीसवीं सदी में भारतीय लौह प्रगलन उद्योग का पतन क्यों हुआ?

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Answered by SweetCandy10
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Answer:

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उन्नीसवीं सदी में भारतीय लौह प्रगलन उद्योग का पतन

  1. औपनिवेशिक सरकार के नए वन कानूनों ने वनों को आरक्षित घोषित कर दिया। वनों में लोगों के प्रवेश पर पाबंदी लगने के कारण लौह प्रगलकों के लिए कोयला बनाने के लिए लकड़ी मिलना बंद हो गयी।
  2. उन्नीसवीं सदी के अंत तक ब्रिटेन से लोहे और इस्पात का आयात होने लगा, जिसके कारण स्थानीय प्रगालकों द्वारा बनाए जा रहे लोहे की माँग कम होने लगी।
  3. कुछ क्षेत्रों में सरकार ने जंगलों में प्रवेश की अनुमति दे दी, लेकिन प्रगालकों को अपनी प्रत्येक भट्टी के लिए वन विभाग को बहुत भारी टैक्स देने पड़ते थे, जिससे उनकी आय में कमी आ गयी!

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Answered by payalgpawar15
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Answer:

(i) औपनिवेशिक सरकार ने आरक्षित वनों में लोगों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी परिणामस्वरूप लोहा बनाने वालों को कोयले के लिए लकड़ी मिलना मुश्किल हो गया था तथा लौह अयस्क प्राप्त करना भी कठिन था। लिहाज़ा, बहुत सारे कारीगरों से यह पेशा छोड़ दिया और वे आजीविका के दूसरे साधन ढूँढ़ने लगे।

(ii) कुछ क्षेत्रों में सरकार ने जंगलों में आवाजाही की अनुमति दे दी थी। लेकिन प्रगालकों को अपनी प्रत्येक भट्ठी के लिए वन विभाग को बहुत भारी कर चुकाने पड़ते थे जिससे उनकी आय गिर जाती थी।

(iii) उन्नीसवीं सदी के आखिर तक ब्रिटेन से लोहे और इस्पात का आयत भी होने लगा था। भारतीय लुहार भी घरेलु बर्तन व औज़ार आदि बनाने के लिए आयातित लोहे का इस्तेमाल करने लगे थे। इसकी वजह से स्थानीय प्रगालकों द्वारा बनाए जा रहे लोहे की माँग कम होने लगी।

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