Political Science, asked by alfishasaifi93, 7 months ago

उन परिस्थितियों का वर्णन करें जिन्होंने 1947 में जम्मू और कश्मीर का मार्ग बदल दिया​

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Answered by mrsheshmani8327
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Explanation:

बुर्ज़होम पुरातात्विक स्थल (श्रीनगर के उत्तरपश्चिम में 16 किलोमीटर (9.9 मील) स्थित) में पुरातात्विक उत्खनन[3] ने 3000 ईसा पूर्व और 1000 ईसा पूर्व के बीच सांस्कृतिक महत्व के चार चरणों का खुलासा किया है।[4] अवधि I और II नवपाषाण युग का प्रतिनिधित्व करते हैं; अवधि ईएलआई मेगालिथिक युग (बड़े पैमाने पर पत्थर के मेन्शर और पहिया लाल मिट्टी के बर्तनों में बदल गया); और अवधि IV प्रारंभिक ऐतिहासिक अवधि (उत्तर-महापाषाण काल) से संबंधित है। यहां का प्राचीन विस्तृत लिखित इतिहास है राजतरंगिणी, जो कल्हण द्वारा 12वीं शताब्दी ई. में लिखा गया था। तब तक यहां पूर्ण हिन्दू राज्य रहा था। यह अशोक महान के साम्राज्य का हिस्सा भी रहा। लगभग तीसरी शताब्दी में अशोक का शासन रहा था। तभी यहां बौद्ध धर्म का आगमन हुआ, जो आगे चलकर कुषाणों के अधीन समृध्द हुआ था। उज्जैन के महाराज विक्रमादित्य के अधीन छठी शताब्दी में एक बार फिर से हिन्दू धर्म की वापसी हुई। उनके बाद ललितादित्या शासक रहा, जिसका काल 697 ई. से 738 ई. तक था। "आइने अकबरी के अनुसार छठी से नौ वीं शताब्दी के अंत तक कश्मीर पर शासन रहा।" अवंती वर्मन ललितादित्या का उत्तराधिकारी बना। उसने श्रीनगर के निकट अवंतिपुर बसाया। उसे ही अपनी राजधानी बनाया। जो एक समृद्ध क्षेत्र रहा। उसके खंडहर अवशेष आज भी शहर की कहानी कहते हैं। यहां महाभारत युग के गणपतयार और खीर भवानी मन्दिर आज भी मिलते हैं। गिलगिट में पाण्डुलिपियां हैं, जो प्राचीन पाली भाषा में हैं। उसमें बौद्ध लेख लिखे हैं। त्रिखा शास्त्र भी यहीं की देन है। यह कश्मीर में ही उत्पन्न हुआ। इसमें सहिष्णु दर्शन होते हैं। चौदहवीं शताब्दी में यहां मुस्लिम शासन आरंभ हुआ। उसी काल में फारस से से सूफी इस्लाम का भी आगमन हुआ। यहां पर ऋषि परम्परा, त्रिखा शास्त्र और सूफी इस्लाम का संगम मिलता है, जो कश्मीरियत का सार है। भारतीय लोकाचार की सांस्कृतिक प्रशाखा कट्टरवादिता नहीं है।

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