उनके चरित्र की आवा उनके व्यक्तित्व में जलती है
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Explanation:
ही व्यक्तित्व कहलाता है। आधुनिक मनोविज्ञान का बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रमुख विषय है-व्यक्तित्व। कोई व्यक्ति कैसा आचरण करता है, कैसा महसूस करता है और कैसा सोचता है; किसी विशेष परिस्थिति में वह कैसा व्यवहार करता है, यह काफी कुछ उसकी मानसिक संरचना पर निर्भर करता है।
किसी व्यक्ति की केवल वाह्य आकृति या उसकी बातें या चाल-ढाल उसके व्यक्तित्व के केवल छोर भर हैं। ये उसके सच्चे व्यक्तित्व को प्रकट नहीं करते। व्यक्तित्व का विकास वस्तुत: व्यक्ति के गहन स्तरों से संबंधित है। इसलिए मन और उसकी क्रियाविधि के बारे में स्पष्ट समझ से ही हमारे व्यक्तित्व का अध्ययन प्रारंभ होना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ विशेष गुण या विशेषताएं होती हैं, जो दूसरे व्यक्ति में नहीं होतीं। इन्हीं गुणों और विशेषताओं के कारण ही प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न होता है। व्यक्ति के इन गुणों का समुच्चय ही व्यक्ति का व्यक्तित्व कहलाता है। व्यक्तित्व एक स्थिर अवस्था न होकर एक गतिशील स्थिति है, जिस पर परिवेश का प्रभाव पड़ता है। इसी कारण से उसमें बदलाव आ सकता है। 1व्यक्ति केआचार-विचार, व्यवहार, क्रियाएं और गतिविधियों में व्यक्ति का व्यक्तित्व झलकता है। व्यक्ति का समस्त व्यवहार उसके वातावरण या परिवेश में समायोजन करने के लिए होता है। जनसाधारण में व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के वाह्य रूप से लिया जाता है, परंतु मनोविज्ञान में व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के गुणों से है। मनुष्य के व्यक्तित्व की पहचान उसके बातचीत करने के ढंग से होती है। भले ही कोई व्यक्ति कितना ही सुंदर हो, परंतु वाणी में कर्कशता या रूखापन हो, तो वह कभी किसी को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकता। इसके विपरीत सामान्य-सा दिखने वाला व्यक्ति यदि सौम्य है और उसकी वाणी में मिठास है तो वह सहज ही सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेगा।