उनके पिता एक अनुभवी पुरुष थे। समझाने लगे-बेटा घर की दुर्दशा देख रहे हो। ऋण के व्योझ से दबे हुए हैं। लड़कियां हैं यह घास फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं। मैं कगारे पर का वृक्ष हो रहा हूँ न मालूम कब गिर पड़े अब तुम्हीं घर के मालिक-मुख्तार हो। नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढ़ना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो।। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्ध नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी वारकरा होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ। इस विषय में विवेक की बड़ी आवश्यकता है। मनुष्य को देखो, उसकी आवाश्यकता को देखो और अवसर को देख उसके उपरांत जो उचित समझो, करो। गरजवाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ ही लाभ है, लेकिन बेगर को दाँव पर पाना जरा कठिन है। इन बातों को निगाह में बाँध लो। यह मेरी उन्मभर की कमाई है। प्र.1 प्रस्तुत पाठ के लेखक का नाम बताए ? प्रेमचंद ख) प्रेमचन्द्र ग) रामचंद घ) रामचंद्र प्र.-2 प्रस्तुत गद्यांश में पिता का क्या नाम था ? क ) अलोपिदीन ख) बंशीधर ग) बदलूसिंह घ) उपरोक्त में से कोई नहीं प्र.-3 बंशीधर के पिता बंशीधर को किस चीज की शिक्षा दे रहे है ? सदाचार ख) अनाचार ग) दुराचार घ) भ्रष्टचार प्र.4 पूर्णमासी का चाँद किसे कहा गया है ? रिश्वत ख) उपरी आय ग) मासिक वेतन घ) चढ़ावे प्र.-5 बंशीधर के पिता अपनी उम्र के लिए किस वाक्य का प्रयोग करते थे ? वृद्ध पुरुष ख) बीमार पुरुष ग) कगारे का वृक्ष घ) घास फूस
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1 ख प्रेमचंद्र 2 (क) अलोपीदीन 3(क) सदाचार 4(ग) मासिक वेतन 5(ग) कगरे का वृक्ष
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