उनके साथ खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़', इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
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हरिवंशराय बच्चन हिन्दी के प्रमुख कवि और लेखक हैं।'हालावाद' के प्रवर्तक बच्चन जी हिन्दी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों मे से एक हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति मधुशाला है। ये छायावाद के आस्थावादी कवि हैं इनकी रचनाओं में आस्था, स्वप्न, विद्रोह और निर्माण की गूँज सुनाई पड़ती है।
इनको बाल्यकाल में 'बच्चन' कहा जाता था जिसका शाब्दिक अर्थ 'बच्चा' या संतान होता है। बाद में ये इसी नाम से मशहूर हुए। इन्होंने कायस्थ पाठशाला में पहले उर्दू की शिक्षा ली जो उस समय कानून की डिग्री के लिए पहला कदम माना जाता था। उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम. ए. और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य के विख्यात कवि डब्लू बी यीट्स की कविताओं पर शोध कर पीएच. डी. पूरी की।
इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन-कार्य किया। बाद में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ रहे। इन्हें राज्य सभा का सदस्य भी मनोनीत किया गया।
इनकी भाषा सहज, भावपूर्ण और भाषाई मिठास लिए हुई है। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं - मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा-निमंत्रण, दो चट्टानें (साहित्य अकादमी), बुद्ध और नाचघर, खादी के फूल, चार खेमे चौंसठ खूँटे, एकांत संगीत, मिलन यामिनी आदि।
आज के दौर में जहाँ इनसान मान, सम्मान, प्रतिष्ठा और पद की महत्वाकांक्षा में किसी के भी सामने झुकने को तैयार बैठा हो वहाँ अपनी रीढ़ को सीधी रखने वालों की कमी को महसूस किया जाना स्वाभाविक है।
"मैं हूँ उनके साथ" कविता में कवि उनके साथ खड़ा रहना चाहता है जिसने अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखा है और वह हर तरह के अन्याय, शोषण और हिंसा के खिलाफ तनकर खड़ा है। कवि का मानना भी है कि जो इनसान हर तरह के अभाव, अज्ञान और संताप से लड़ने की हिम्मत रखता है, सफलता भी उसी को प्राप्त होती है।
ऐसे लोग अपनी रीढ़ को सीधी रखते हैं अर्थात वे हमेशा तनकर चलते हैं और जीवन में आने वाली कठिनाइयों के सामने हार नहीं मानते हैं। वे कभी भी अपने न्यायसम्मत अधिकारों को नहीं त्यागते हैं। वे कभी भी अत्याचारी के सामने सिर झुकाकर नहीं खड़े होते और न ही जीवन में किसी भी तरह के अत्याचार को सह लेते हैं। ऐसे लोग चाहे अकेले हों या फिर उनके साथ जन सैलाब, सफलता उन्हीं को प्राप्त होती है।
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तुम मुझ पर या हम सभी पर हँस रहे हो, उन पर जो अँगुली छिपाए और तलुआ घिसाए चल रहे हैं, उन पर जो टीले को बरकाकर बाजू से निकल रहे हैं। तुम कह रहे हो-मैंने तो ठोकर मार-मारकर जूता फाड़ लिया, अँगुली बाहर निकल आई, पर पाँव बच रहा और मैं चलता रहा, मगर तुम अँगुली को ढाँकने की चिंता में तलुवे का नाश कर रहे हो। तुम चलोगे कैसे?
लेखक के अनुसार प्रेमचंद किन पर हँस रहे हैं?
प्रेमचंद के मुसकराने में लेखक को क्या व्यंग्य नज़र आता है?
प्रेमचंद को किनके चलने की चिंता सता रही है?1) मंदिर भी किसी देवता का घर ही होता है। इसलिए पुराने मंदिर बहुत कुछ घर जैसे ही होंगे। (2) आरंभ में मनुष्य किसी विशेष मंदिर निर्माण शैली से परिचित नहीं था इसलिए देवी देवताओं के रहने का स्थान उनके घर ही होते थे। मेसोपोटामिया में मंदिर विभिन्न प्रकार के देवी देवताओं का निवास स्थान थे।राष्ट्रपति का निर्वाचन इलेक्टोरल कॉलेज के द्वारा किया जाता है. इन इलेक्टोरल कॉलेज निर्वाचक मंडल के सदस्य होते हैं लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य और इसके अलावा सभी विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य.
विधान परिषद् के सदस्य उसके सदस्य नहीं होते. लोकसभा और राज्यसभा के नामांकित सदस्य भी इसके सदस्य नहीं होते हैं.
लेकिन इन सभी के मतों का मूल्य अलग-अलग होता है. लोकसभा और राज्यसभा के मत का मूल्य एक होता है और विधानसभा के सदस्यों का अलग होता है. ये राज्य की जनसंख्या के आधार पर तय होता है.
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