Hindi, asked by Madhavcool4345, 1 year ago

Untouchability a problem, Write in your own words about your view in Hindi

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Answered by Suryavardhan1
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अस्पृश्यता या छूआछूत परम्परागत हिन्दू समाज से जुड़ी सामाजिक बुराई और एक गंभीर खतरा है। ये बहुत से समाज सुधारकों के विभिन्न प्रयासों के बाद भी जैसे डॉ. भीमराव अंबेडकर और उनके द्वारा निर्मित संविधान के अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता के उन्मूलन के बावजूद ये अति प्राचीन समय से प्रचलित प्रथा आज भी प्रचलन में है।अस्पृश्यता या छूआछूत एक सामान्य शब्द है जिसे अभ्यास द्वारा समझा जा सकता है जहाँ एक विशेष जाति या वर्ग के व्यक्ति को निम्न जाति में जन्म लेने या उस निचली जाति समूह से संबंध रखने के कारण उस समूह से निचले स्तर के कार्यों को कराकर भेदभाव किया जाता है। उदाहरण के लिये; तथाकथित ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि उच्च जाति के लोग भंगी के साथ बैठकर भोजन नहीं कर सकते।

ये मान्यता है कि अस्पृश्य या अछूत लोगों से छूने, यहाँ तक कि उनकी परछाई भी पड़ने से उच्च जाति के लोग अशुद्ध हो जाते है और अपनी शुद्धता वापस पाने के लिये उन्हें पवित्र गंगा-जल में स्नान करना पड़ता है।
हिन्दूओं की परंपरागत प्राचीन “वर्ण-व्यवस्था” के अनुसार, एक व्यक्ति का जन्म कर्म और ‘शुद्धता’ के आधार पर चारों में से किसी एक जाति में होता है। जिनका जन्म ब्राह्मण वर्ण में होता है वो पुजारी या शिक्षक होता है, क्षत्रिय कुल में जन्म लेने वाला शासक या सैनिक; वैश्य वर्ण में जन्म लेने वाला व्यापारी और शूद्र वर्ण में जन्म लेने वाला मजदूर होता है।

अछूत सचमुच बहिष्कृत जाति है। वो किसी भी हिन्दूओं की परंपरागत “वर्ण व्यवस्था” में सीधे रुप से गिनती में नहीं आते। डॉ. भीमराव अम्बेडकर के अनुसार, अछूत पूरी तरह से नया वर्ग है उदाहरण के तौर पर पहले से स्थापित चार वर्णों से अलग पांचवां नया वर्ण है। इस प्रकार, अछूत हिन्दूओं की जाति व्यवस्था में पहचाने नहीं जाते।

हांलाकि, ऐतिहासिक रुप से निचले स्तर के व्यक्ति जो घटिया निम्न स्तर के नौकर-चाकर वाले कार्य करते थे, अपराधी, व्यक्ति जो छूत (छूने से फैलने वाली बीमारी) की बीमारी से पीड़ित होते थे, वो समाज से बाहर रहते थे, उन्हें ही सभ्य कहे जाने वाले नागरिकों द्वारा अछूत माना जाता था। उस समय उस व्यक्ति को समाज से निष्काषित इस आधार पर किया जाता था कि वो समाज के अन्य लोगों के लिये हानिकारक है, उसकी बीमारी छूने से किसी को भी हो सकती है और उस समय में इस बीमारी का कोई इलाज नहीं था जिसकी वजह से उसे समाज से बाहर अन्य व्यक्तियों की सुरक्षा के लिये रखा जाता था।

अस्पृश्यता दंड़ के रुप में भी दी जाने वाली प्रथा थी जो उन व्यक्तियों को दी जाती थी जो समाज के बनाये हुये नियमों को तोड़कर समाजिक व्यवस्था में बाधा उत्पन्न करते थे।


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