India Languages, asked by rituraj787, 11 months ago

Up ki jiss nadi ko paryavarad pradushad k karad jaivik aapda ghoshit kiya gya

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मधुबनी नदियों की नैहर है। यहा छोटी बड़ी एक दर्जन से अधिक नदियां खेतों को कल-कल की सुमधुर कर्णप्रिय आवाज करती निश्छल भाव से बहती हुई न केवल खेतों को सिंचित कर धन-धान्य से पूरित करती है वरन लोगों को सांस्कृतिक रूप से लोगों को जोड़ती भी है। लेकिन बदलते समय के साथ हमने निश्छल भाव से आम लोगों का कल्याण करने वाली नदी को इतना प्रदूषित कर दिया है कि वह इससे मुक्ति को कराह रही है।

एक दर्जन से अधिक हैं नदियां

जिले में वैसे तो एक दर्जन से अधिक छोटी-बड़ी नदियां हैं। लेकिन कोसी,कमला, बलान, भूतही, गेहूंमा, सूपेन, त्रिशुला, गागन, जीवछ, धौस व अधवारा समूह की नदियां प्रमुख है।

धौस नदी सर्वाधिक प्रदूषित

प्राय: जिले से होकर बहाव करने वाली अधिकांश नदियां नेपाल की पहाड़ियों से निकलती है। जिसमें से भी अधिकांश मधुबनी सीमा में प्रवेश करते हुए नदी का रूप लेती हैं। लेकिन इसमें से सर्वाधिक प्रदूषित धौस नदी है। जो नेपाल से ही प्रदूषित जल लाकर भारतीय क्षेत्र में प्रदूषण से जन-धन के लिए तबाही लाती है।

इन कारणों से हो रही जहरीली

धौस नदी में नेपाल के कई फैक्ट्रियों का अवशिष्ट डाला जाता है। जिससे यह नदी जहरीली हो गई है। पहले यह स्थिति नहीं थी। इसका निर्मल जल न केवल खेतों को सिंचित कर भरपूर धान्य देता था, वरन लोग इसमें स्नान के साथ पर्व त्योंहारों में उपयोग करते थे। दैनिक उपयोग के लिए यह नदी आदर्श स्थिति में थी। लेकिन करीब दो दशक पूर्व इस नदी के किनारे नेपाली क्षेत्र में कई जूते व कूट की फैक्ट्रियां लग गई और उसका अवशिष्ट इसमें डालने का काम शुरू हो गया। तबसे इसका पानी काला हो गया। जिस कारण लोग इसके पानी का उपयोग करना बंद कर दिया। दूसरे नंबर पर कमला, जीवछ का नाम आता है। जिसके किनारे लोग शव जलाने का काम करते हैं। जिस कारण शव का जला अवशिष्ट इसे प्रदूषित कर दिया है। जिस कारण इसका भी पानी बरसात के दिनों को छोड़ कर उपयोग का नहीं रहा।

प्रदूषणमुक्त को पहल नहीं

इन नदियों को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए किसी भी स्तर पर पहल की जानकारी नहीं है। न तो स्वयंसेवी संगठन और न ही सरकारी और न ही प्रशासनिक स्तर पर किसी भी प्रकार की पहल नहीं की गई है।

क्या पड़ रहा प्रभाव

मधुबनी का लगभग सौ गांव नदी के किनारे ही अवस्थित है। नदी इन गांवों के प्राण है। आस्था है। जनजीवन है। इन नदियों का उपयोग लोग सुबह उठने के साथ व शाम तक विभिन्न प्रकार के कायरें के लिए करते रहे हैं। लेकिन इसके प्रदूषित हो जाने से आम जन जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। खास कर धौस नदी के पानी से खेतों को सिंचित करने से उर्वरा शक्ति कम हो रही है। इसमें स्नान करने से विभिन्न प्रकार के चर्मरोग से लोग शिकार हो रहे हैं। इसके पानी का उपयोग आप पीने के रूप में नहीं कर सकते हैं। यहां तक की मवेशी के लिए भी इस पानी का उपयोग लोग नहंी कर रहे हैं। जिस कारण एक साथ पशुपालन, खेती व सामान्य जन जीवन प्रदूषण से प्रभावित हो रहा है। वहीं जीवछ, कमला व अन्य नदी के किनारे शवों को जलाए जाने से भी नदियों का पानी प्रदूषित हो रहा है। जिस कारण इसके पानी का भी उपयोग लोग नहीं कर पा रहे हैं। यही नहीं इन नदियों के किनारे सालों भर विभिन्न प्रकार के पर्व त्योहारों का भी आयोजन होता रहता है। स्नान करने की प्रक्रिया तो दैनिक जीवन का हिस्सा ही है। प्रदूषण के कारण अब लोग इस कार्य के लिए भी हिचकने लगे हैं। जिस कारण नदियों के प्रति प्राचीन काल से आ रही आस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा है।

प्रदूषणमुक्त करने का हो प्रयास

पर्यावरणविद सह नदी विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्र का मानना है कि जबसे नदियों को तटबंधों में कैद किया गया है तबसे प्रदूषण की समस्या बढ़ गई है। इसे प्रदूषणमुक्त करने के लिए यदि हम सरकारी प्रयास पर निर्भर रहेंगे तो दिनों दिन समस्या बढ़ती ही जाएगी। इसलिए इसमें लोगों को नदी को प्रदूषणमुक्त करने के लिए जागरूक करना होगा और इसके लिए नदी किनारे बसे लोगों को ही पहली पहल करनी होगी। जहां तक धौस नदी के प्रदूषित होने का सवाल है कि समस्या अंतराष्ट्रीय है इसके लिए राजनयिक स्तर की वार्ता ही निदान है।

नदी स्वच्छता को नहीं है राशि

सरकारी स्तर पर जिले की नदियों को स्वच्छ रखने के लिए किसी भी प्रकार की राशि की व्यवस्था है और न ही किसी भी प्रकार का प्लान है। हां निजी स्तर पर कई स्वयंसेवी संगठन इसके लिए आवाज व संगोष्ठी का आयोजन जरूर यदा-कदा कर जागरूक करने का काम करते रहते हैं।

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