उपुक्त गद्यांश में लेखक ने व्याप्त खोखलेपन और दिखावेपन को दर्शाया है ? क्या आज भी ये प्रचलन जारी है ?
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लेखक का केहना है की आज के इस युग में हर किसी को अपने काम की जल्दी होती है किसी को किसी के लिए वक्त नहीं है बाहर से लोग कुछ और होते है और अंदर से कुछ और प्रचलन को रोकने के लिए हमे एक जुट होना होगा
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