उपादान से क्या समझते
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उपासना परमात्मा की प्राप्ति का साधनविशेष। 'उपासना' का शब्दार्थ है - 'अपने इष्टदेवता की समीप (उप) स्थिति या बैठना (आसन)'।
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✍️★ उत्तर ★✍️:
▶️किसी वस्तु की तृष्णा से उसे ग्रहण करने की जो प्रवृत्ति होती है, उसे उपादान कहते हैं।
▶️उपादान से ही प्राणी के जीवन की सारी भाग दोड़ होती है, जिसे भव कहते हैं।
तृष्णा के न होने से उपादान भी नहीं होता और उपादान के निरोध से भव का निरोध हो जाता है। यही निर्वाण के लाभ की दिशा है।
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