उपभोक्ता शिक्षा क्यों आवश्यक है?
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वर्तमान युग व्यावसायिक जटिलताओं का युग है। जिसमें नित नए तकनीकीपरिवर्तन होते रहते हैं। उपभोक्ता की प्रभुता सीमित होती जा रही है। विकसित तथा प्रगतदेशों की तुलना में अविकसित तथा पिछड़े देशों में उपभोक्ता की प्रभुता अधिक सीमिततथा सीमाबद्ध होती है। श्रीमति बारबरा वूटन ने ठीक ही कहा है कि उसके समक्ष वस्तुओंकी इतनी विभिन्नताएॅं रखी जाती हैं कि वह किंकर्तव्य-विमूढ़ बनकर ही रह जाता है तथाविवेकपूर्ण चयन नहीं कर पाता। विवेक चयन करने के लिए उसके पास न्यूनतम तकनीकीजानकारी का अभाव होता है। जब तक उपभोक्ता को भली-भॉंति शिक्षित नहीं कियाजाता, तब तक वह शोषण का शिकार होता रहेगा। यह बात भारत जैसे देश के लिएअधिक लागू होती है। उपभोक्ता शिक्षा की आवश्यकता या महत्व निम्नलिखित बातों द्वारास्पष्ट हो जाता है-
सही वस्तु खरीदने की क्षमता का विकास होना –
उपभोक्ता शिक्षा से सहीवस्तुओं या सेवाओं को खरीदने की क्षमता का विकास होता है।
हानिकारक वस्तुओं के उपभोग पर रोक –
उपभोक्ता शिक्षा से उपभोक्ताओं कोयह ज्ञात हो जाता है कि कौनसी वस्तु स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और कौनसी वस्तुजीवन-स्तर में सुधार करने मे भी सहायक होती है। कौन सी वस्तु किस उद्देश्य केकलिए और किस उपयोग के लिए सर्वाधिक उपयोगी होगी, यह जानकारी उपभोक्ता शिक्षाके माध्यम से हो जाती है।
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