- उपचारात्मक आहार का क्या अर्थ है ?
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उपचारात्मक आहार किसे कहते हैं?
वह आहार जो रूग्णावस्था में किसी व्यक्ति को दिया जाता है। ताकि वह जल्दी सामान्य हो सके यह सामान्य भोजन का संशोधित रूप होता है। उपचारात्मक आहार कहते है। क्योंकि बीमार पड़ने पर व्यक्ति के शरीर को कोई भाग रोग ग्रसित हो जाता है। जिससे उसकी पोषण आवश्यकता में परिवर्तन आ जाता है। जैसे मधुमेह में पेनक्रियाज उपयुक्त मात्रा में इन्सुलिन उत्पन्न नही कर पाता जो कि शक्कर के पाचन में सहायक होता है। ऐसे में यदि हम व्यक्ति को सामान्य मात्रा में शक्कर देगे तो उसके लिये हानिकारक होगी और जब शक्कर उसके आहार से अलग कर दी जाती है। तो इन्सुलिन को आवश्यकता नही होती उपचारात्मक आहार देने के प्रमुख कारण- बीमारी में आहार परिवर्तन के कारण निम्नलिखित है।
1 पोषण का अच्छा स्तर बनाये रखना।
2 पोषण की अपर्याप्त मात्रा को सही करना।
3 आहार की तरलता में संशोधन करना।
4 शारीरिक वजन में आवश्यकतानुसार कमी करना।
Explanation:
आहार संशोधन करते समय ध्यान रखने योग्य बाते:-
1 रोगी को ऐसा महसूस न हो कि उसे परिवार के अन्य सदस्यों से एकदम भिन्न आहार दिया जा रहा है।
2 रोगी की रूचि के अनुसार भोजन हो
3 आहार को आर्कषक ठंग से परोसा जाये ताकि रोगी को खाने की इच्छा हो।
उपचारात्मक आहार संशोधन के प्रकार
आहार की तरलता में संशोधन - कई बार रोगी कुछ बीमारियों में ठोस भोजन नही ले पाता जैसे ज्वर, दस्त, वमन। ऐसे समय मे तरल आहार देना लाभदायक होता है। स्थिति सामान्य होने पर अर्द्धठोस या ठोस।
पोषक तत्वों में परिवर्तन- रोग के हिसाब से पोषक तत्वों में परिवर्तन किया जाना चाहिए जैसे उच्च रक्त चाप में नमक की कमी, दस्त में तरल पदार्थो की अधिकता, पीलया में कम वसा।
भोजन की बारम्बारता में परिर्वतन- बीमारी की अवस्था में व्यक्ति एक बार में अधिक भोजन नही ले पाता और इस समय सही मात्रा में पोषक तत्व मिलना भी आवश्यक होता है।
अत: भोजन बारम्बारता का अर्थ है। थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बार-बार भोज्य पदार्थ को ग्रहण करना।
उपचारात्मक आहार संशोधन तरलता में पोषक तत्व में भोजन की बारंबातरता में विभिन्न रोगों में आहार दस्त - कम रेशेयुक्त, अर्धठोस ज्वर - अधिक ऊर्जा, अधिक प्रोटीन युक्त मधुमेह - बिना शक्कर सामान्य आहार उच्च रक्तचाप - कम ऊर्जा, कम कॉलेस्ट्राल व कम नमक पीलिया - कम वसा कब्ज़ - अधिक रेशेयुक्त