उपकारी नहीं चाहते, पाना प्रत्युपकार।
बादल को बदला भला, क्या देता संसार ।।१।।
दान-पुण्य-तप-कर्म भी करते हैं जो लोग।
उनसे बढ़ हैं हृदय से, सच बोलें जो लोग ।। २॥iska arath samjhaiye
Answers
उपकारी नहीं चाहते, पाना प्रत्युपकार।
बादल को बदला भला, क्या देता संसार ।।१।।
अर्थ ►जो लोग दूसरों पर उपकार करते हैं, जो सच्चे परोपकारी होते हैं, वह बदले में अपने उपकार के बदले में कुछ पाने की आकांक्षा नहीं रखते हैं, अर्थात सच्चा उपकार करने वाले निस्वार्थ भाव से उपकार करते हैं, उन्हें बदले में कुछ पाने की कामना नहीं रहती। बिल्कुल उसी तरह जिस तरह बादल पानी बरसाता है, लेकिन संसार बादल को बदले में कुछ नहीं दे पाता। फिर भी बादल निरंतर पानी बरसाता ही रहता है।
हमें भी अपने जीवन में इसी तरह का सिद्धांत रखना चाहिए। हमें निस्वार्थ भाव से उपकार करते हुए बदले में कुछ भी पाने की आकांक्षा नहीं रखना चाहिए। निस्वार्थ भाव से किया गया उपकार ही सच्चा उपकार है। बदले में कुछ पाने की आकांक्षा रखकर किया गया उपकार उपकार नहीं व्यापार है।
दान-पुण्य-तप-कर्म भी करते हैं जो लोग।
उनसे बढ़ हैं हृदय से, सच बोलें जो लोग ।। २।।
अर्थ ► जो लोग दान करते हैं, पुण्य करते हैं, तप करते हैं, ये सब अच्छे कर्म हैं, ले श्रेष्ठ और उत्तम गुणों से परिपूर्ण है। ऐसे लोगों वंदनीय है। लेकिन इन सब सद्गुणों से भी अच्छे वे लोग वंदनीय है जो ह्रदय के निर्मल हैं, जो इनका हृदय सच्चा है, जिनके हृदय में किसी के प्रति दुराभान नहीं है। जो हमेशा सत्य का पालन करते हैं, सत्य वचन बोलते हैं और सब के प्रति प्रेम भाव रखते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि दान और तप से भी बढ़कर श्रेष्ठ कर्म हृदय की निर्मलता और मन एवं विचारों की स्वच्छता है।
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