उपर्युक्त कुंडलियों का भावार्थ लिखिए।
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कह 'गिरिधर कविराय', मिलत है थोरे दमरी। सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥ 'बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै' - पंक्ति का भावार्थ स्पष्ट कीजिए। इस पंक्ति का भाव यह है कि कंबल को बाँधकर उसकी छोटी-सी गठरी बनाकर अपने पास रख सकते हैं और ज़रूरत पड़ने पर रात में उसे बिछाकर सो सकते हैं।
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