उपर्युक्त में से दस-पंद्रह संवादों को चुने,उनके साथ दृश्यों की कल्पना करें और एक छोटा सा नाटक लिख्ने का प्रयास करें।
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भले ही जयशंकर प्रसाद के नाटकों को मंच के अनुकूल न माना गया हो लेकिन ‘ध्रुवस्वामिनी’ हमेशा से रंगकर्मियों के बीच चर्चा का विषय रहा है.
मात्र नाट्य मंडलियों के साथ ही नहीं, स्कूलों कॉलेजों के छात्र-छात्राओं के बीच भी इस नाटक का ख़ूब मंचन हुआ है.
इस नाटक की सबसे बड़ी बात है उसका कथ्य – यदि पति नपुंसक है तो उसे नकारने की पहल स्त्री की तरफ़ से होती है और इसमें धर्म और शास्त्र भी उसका समर्थन करते हैं.
खिड़की (दरवाजे से)- आज मेरे घर मेहमान आने वाले हैं?
दरवाजा- कौन हैं वो?
खिड़की- उनका नाम कलम और कॉपी है। बच्चों की गर्मियों की छुट्टियां होने वाली हैं। इसलिए वह ऋषिकेश घूमने आने वाले हैं।
खिड़की- तुम भी जल्दी से आ जाओ। घंटी बजी है, लगता है आ गए वो लोग।
दरवाजा- हां, ठीक है आता हूं मैं भी।
खिड़की- आइए-आइए, स्वागत है आपका। सफर में कोई दिक्कत तो नहीं हुई?
कलम- अरे! कोई दिक्कत नहीं हुई। जैसे ही हम लोगों ने ऋषिकेश में कदम रखा, मन को सुकून मिला।
कॉपी- मैं तो कब से आना चाहती थी लेकिन मौका ही नहीं मिल पा रहा था। सही में यह बहुत सुंदर जगह है। कम से कम कुछ दिन दिमाग को शांति मिलेगी।