उपस्थिति विलय का क्या कार्य होता है
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एनपीए दर 5% से अधिक है.
आरबीआई के प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन फ्रेमवर्क के अनुसार 6% एनपीए दर होने पर बैंकों को इसके दायरे में लाकर कई तरह की पाबंदियां लगा दी जाती है. यानी यह स्थिति बैंकों के लिए खतरनाक होती है जहां केंद्रीय बैंक अपनी निगरानी में बैंकों की लेनदेन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है.
जिन 10 बैंकों का विलय हुआ है उनमें से सिर्फ इंडियन बैंक और इलाहाबाद बैंक के विलय के बाद एनपीए दर 4.39% रहेगा. पंजाब नेशनल बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के विलय के बाद से एनपीए की दर 6.61% हो जाएगी.
केनरा बैंक और सिंडिकेट बैंक के विलय के बाद एनपीए दर 5.62% हो जाएगी. यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, आंध्रा बैंक और कॉरपोरेशन बैंक विलय के बाद एनपीए दर 6.3% पर पहुंच जाएगी.
ऐसी स्थिति में सबसे पहले बैंकों को उनके एनपीए से ही निपटना होगा. इस प्रक्रिया में लगने वाले समय के कारण हो सकता है कि अर्थव्यवस्था में कर्ज सृजन पर एक बुरा असर पड़े. अर्थव्यवस्था में एक सिद्धांत है जिसे 'टू बिग टु फेल' नाम से जाना जाता है.
वर्ष 2008 में जब ग्लोबल मंदी आई थी तो उस दौरान बड़े वित्तीय संस्थान अचानक से डूबने लगे थे जिससे मंदी का असर एक दशक तक दिखा. इसलिए ऐसे कयास लगाए जा सकते हैं कि अगर भारतीय अर्थव्यवस्था में आने वाले समय में सब कुछ ठीक नहीं हुआ और एनपीए के दबाव में बैंक डूबने लगे तो सबसे बड़ी चोट बड़े बैंकों पर आएगी. आरबीआई ने एसबीआई, एचडीएफसी और आईसीआईसीआई बैंक को ऐसी श्रेणी में रखा है.
विलय के बाद मजबूत बैंकों के शेयरों में गिरावट
बैंकों के विलय के बाद अगर उनकी स्थिति को शेयर मार्केट के आधार पर अध्ययन किया जाए तो पाएंगे कि मर्जर के बाद जो बड़े और मजबूत बैंक बने, उनमें गिरावट देखने को मिलती है. उदाहरण के लिए मर्जर के एलान के बाद पंजाब नेशनल बैंक और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स के शेयर प्राइस में क्रमशः 8.5% और 8% की गिरावट आई है तो यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के शेयर में 0.38% की वृद्धि हुई है.
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, आंध्र बैंक और कॉरपोरेशन बैंक के विलय में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है. विलय की घाेषणा के बाद से यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के शेयरों में 9.08 फीसदी की गिरावट आई है तो वहीं कॉरपोरेशन बैंक में 2.92 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है.
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वहीं, विलय होने वाले बैंक आंध्र बैंक के शेयरों में 2.76% की वृद्धि दर्ज की गई है. निष्कर्ष यह निकलता है कि जिन मजबूत बैंकों में कमजोर बैंकों का विलय होना है, वे बाजार में गिरावट देख रहे हैं और कमजोर बैंक के शेयरों में वृद्धि देखी जा रही है.
यह स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक है. बड़े बैंकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती बाजार में बने रहने की है. कारण है कि 'टू बिग टु फेल' रिस्क सिद्धांत के अनुसार जितने बड़े वित्तीय संस्थान होंगे उनके डूबने के चांस भी उतने ही ज्यादा होंगे.
लेकिन, एक झटके में यह भी कहना गलत होगा कि विलय के बाद से बैंक डूब ही जाते है. उदाहरण के रूप में वर्ष 2017 में एसबीआई के 6 सहायक बैंकों का विलय एसबीआई में हुआ था. विलय के बाद एसबीआई 6,500 करोड़ रुपये के घाटे में आ गई थी जबकि विलय से पहले एसबीआई 10,000 करोड़ रुपये के लाभ में थी. लेकिन विलय के बाद समय के साथ एसबीआई ने अपनी स्थिति में सुधार करते हुए अभी के तिमाही नतीजों में लाभ अर्जित किया है और उसके ग्रॉस एनपीए में भी कमी आई है.
इसी तरह वर्ष 2019 में देना बैंक और विजया बैंक का विलय बैंक ऑफ बड़ौदा में किया गया था, जो 1 अप्रैल 2019 से प्रभावी हुआ है. वर्ष 2018 में बैंक ऑफ बड़ौदा 2431.81 करोड़ रुपये के घाटे में थे. वहीं 2019 में बैंक ऑफ बड़ौदा ने 433.52 करोड़ रुपये का लाभ अर्जित किया है.
एसबीआई की तरह ही बैंक ऑफ बड़ौदा आने वाले समय में घाटे से उभरते हुए लाभ देने के संकेत दे रहा है. लेकिन शेयर बाजार में विलय के बाद बैंक ऑफ बड़ौदा के शेयर प्राइस 150 रुपये से घटकर 92 रुपये पर आ गए हैं.
क्या होता सही?
भारतीय अर्थव्यवस्था में इस समय ऐसी स्थिति से बचा जाना ही हितकारी निर्णय होता. मंदी के इस दौर में बैंकों के विलय की प्रक्रिया में देरी के कारण अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.
वित्त मंत्री का यह कहना कि विलय के बाद नौकरियों में छंटनी नहीं की जाएगी, यह एक वक्त के लिए सही लगता है. पर, इस तथ्य का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि विलय के बाद नए रोजगार सृजन पर असर जरूर पड़ेगा.
विलय में सबसे बड़ी चुनौती बैंकों के कर्मचारियों के विलय की है. बैंक कर्मचारी संगठन विलय के खिलाफ सरकार के विरोध अपनी आवाज उठा रहे हैं. सरकार को विलय के बजाय सरकारी बैंकों में अपनी हिस्सेदारी को बाजार में बेचते हुए अतिरिक्त धन जुटाने पर विचार करना चाहिए था. कारण है कि राजस्व संग्रह के लक्ष्य में सरकार काफी पिछड़ चुकी है.
बड़े बैंकों में विलय के बजाय सरकार को छोटे बैंकों के विलय से शुरुआत करनी चाहिए थी. बैंकों के विलय पर एक किस्सा याद आ रहा है. अमेरिका में एक बड़े विद्वान जॉर्ज बर्नार्ड शा जिन्हें नोबेल पुरस्कार मिला था, उनसे अमेरिका की एक खूबसूरत अभिनेत्री ने कहा कि जॉर्ज कितना अच्छा होगा कि मैं और तुम शादी कर लें और हमारा बेटा तुम्हारी बुद्धि और मेरी खूबसूरती के साथ पैदा हो.
जॉर्ज ने जवाब में कहा था कि तुम उस स्थिति के बारे में सोचो जब हमारा बेटा तुम्हारी बुद्धि और मेरी खूबसूरती का होगा. हमें भी भारतीय बैंकों के विलय के संदर्भ में इस किस्से को याद रखना चाहिए. कहीं ऐसा न हो कि कमजोर छोटे बैंक अर्थव्यवस्था में एनपीए की मार झेल रहे बड़े बैंकों को और घाटे की तरफ लेकर चले जाएं.
विक्रांत सिंह