Hindi, asked by omkaslikar0907, 22 days ago

उपसर्ग से 5- 5 शब्द बनाईये |
अतत-,अधि-,अलभ-,अव-,आ-,उप-,दरु, ् तन-,परा,परर, प्रतत, वव सम|

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Answered by riyaasati
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Answer:

उपसर्ग का सम्बन्ध धातु के साथ बड़ा ही रोचक है, अथवा यह कहना ज्यादा उपयुक्त होगा कि प्र, परा आदि धातु के साथ मिलने पर ही उपसर्ग कहे जाते हैं। महर्षि पाणिनि का स्पष्ट मत है –

प्रादयः१, उपसर्गाः क्रियायोगे २

अर्थात् क्रिया के योग में प्रयुक्त ‘प्र’ आदि उपसर्ग संज्ञा को प्राप्त होते हैं। ‘उपसर्ग’ शब्द का भी सामान्यतः यही अर्थ है जो धातुओं के समीप रखे जाते हैं। उपसर्ग के महत्त्व को ध्यान में रखकर कहा गया है –

उपसर्गेण धात्वर्थः बलादन्यः प्रतीयते।

प्रहाराहारसंहारविहारपरिहारवत्।।

अर्थात् उपसर्ग से जुड़ने पर धातु का (मूल) अर्थ भिन्न हो जाता है। जैसे – ‘हार’ शब्द का अर्थ पराजय या माला है, किन्तु उपसर्ग लगने पर उसका अर्थ बिलकुल अन्य ही हो जाता है।

प्र+ हार = प्रहार = मार, चोट

आ + हार = आहार = भोजन

सम् + हार = संहार = विनाश

वि+ हार = विहार = भ्रमण

परि + हार = परिहार = वर्जन

धातुओं पर उपसर्गों का प्रभाव तीन प्रकार से होता है

धात्वर्थं बाधते कश्चित् कश्चित् तमनुवर्तते।

विशिनष्टि तमेवार्थमुपसर्गगतिस्त्रिधा।।

१. कहीं वह उपसर्ग धातु के मुख्य अर्थ को बाधित कर उससे बिल्कुल भिन्न अर्थ का बोध करता है। जैसे-

भवति = होता है।

परा भवति = पराजित होता है।

अनु भवति = अनुभव करता है।

परि भवति = अनादर करता है।

२. कहीं धातु के अर्थ का ही अनुवर्तन करता है। जैसे-

लोकयति = देखता है।

बोधति = जानता है।

अवलोकयति = देखता है।

अवबोधति = जानता है।

आलोकयति = देखता है।

सु बोधति = जानता है।

वि लोकयति = देखता है।

३. कहीं विशेषण रूप में उसी धात्वर्थ को और भी विशिष्ट बना देता है। जैसे

कम्पते = काँपता है।

प्रकम्पते = प्रकृष्ट रूप से काँपता है।

आकम्पते = पूरी तरह से काँपता है।

वि कम्पते = विशेष रूप से काँपता है।

उपसर्ग संख्या में २२ हैं, जो अग्रलिखित हैं – प्र, परा, अप, सम्, अनु, अव, निस्, निर्, दुस्, दुर्, वि, आङ्, नि, अधि, अपि, अति, सु, उत्, अभि, प्रति, परि तथा उप।

धातु के साथ लगकर ये विशिष्ट अर्थ का बोध कराते हैं, किन्तु धातु योग रहने पर इनका सामान्य अर्थ भी इस प्रकार बताया गया है –

प्र- अधिक या प्रकर्ष; परा – उलटा, पीछे; अप – इसका उल्टा, दूर; सम् – अच्छी तरह, एक साथ; अनु – पीछे; अव – नीचे, दूर; निस्– विना, बाहर; निर् – बाहर, उलटा; दुस् – कठिन, उलटा; दुर् – बुरा; वि- विना, अलग, विशेष रूप से; आङ् – तक, इधर; नि-नीचे; अधि- ऊपर या सबसे ऊपर; अपि- निकट, संसर्ग; अति-बहुत अधिक; सु-सुन्दर, आदर; उत्- ऊपर; अभि – सामने, ओर; प्रति – ओर, उलटा; परि – चारो ओर, उप – समीप।

उपसर्ग के साथ प्रयुक्त कुछ धातु रूप

१. प्र:

प्र+भवति = प्रभवति = प्रकट होता है।

प्र + नमति = प्रणमति = झुककर प्रणाम करता है।

प्र + नयति = प्रणयति = रचना (या प्रेम) करता है।

प्र + हरति = प्रहरति = प्रहार करता है।

२. परा :

परा + भवति = परा भवति = पराजित होता है।

परा + जयति = पराजयते = पराजित करता है।

परा + अयते = पलायते = भागता है।

परा + करोति = पराकरोति = भगाता है।

३. अप :

अप + करोति = अपकरोति = बुराई करता है।

अप + सरति = अपसरति = दूर हटता है।

अप+जानाति = अपजानीते = अस्वीकार करता है।

अप + एति = अपैति = दूर होता है।

४. सम् :

सम् + भवति = सम्भवति = सम्भव होता है।

सम् + क्षिपति = संक्षिपति = संक्षेप करता है।

सम् + चिनोति = सञ्चिनोति = इकट्ठा करता है।

सम् + गृह्णाति = संगृह्णाति = संग्रह करता है।

५. अनु :

अनु + भवति = अनुभवति = अनुभव करता है।

अनु + करोति = अनुकरोति = अनुकरण करता है।

अनु + गच्छति = अनुगच्छति = पीछे जाता है।

अनु + जानाति = अनुजानाति = आज्ञा देता है।

अव + गच्छति = अवगच्छति = समझता है।

अव + क्षिपति = अवक्षिपति = निन्दा करता है।

अव + जानाति = अवजानाति = अनादर करता है।

अव + तरति = अवतरति = नीचे उतरता है।

निस + सरति = निस्सरति = निकलता है।

निस + चिनोति = निश्चिनोति = निश्चय करता है।

निस् + क्रामति = निष्कामति = निकलता है।

निस + तरति = निस्तरति = समाप्त करता है।

८. निर् :

निर् + ईक्षते = निरीक्षते = निगरानी करता है।

निर् + वहति = निर्वहति = निर्वहन करता है।

निर् + अस्यति = निरस्यति = हटाता है।

निर + गच्छति = निर्गच्छति = निकलता है।

९. दुस् :

दुस् + चरति = दुश्चरति = बुरा काम करता है।

दुस् + करोति = दुष्करोति = दुष्कर्म करता है।

दुस् + तरति = दुस्तरति = कठिनाई से तैरता है।

१०. दुर् :

दुर् + बोधति = दुर्बोधति = कठिनाइयों से समझता है।

दुर् + गच्छति = दुर्गच्छति = दुःख भोगता है।

दुर् + नयति = दुर्नयति = अन्याय करता है।

११. वि :

वि + तरति = वितरति = बाँटता है।

वि + आप्नोति = व्याप्नोति = फैलता है।

वि + नयति = विनयते = चुकाता है।

वि + जयति = विजयते = जीतता है।

१२. आङ् :

आ+ नयति = आनयति = लाता है।

आ + चरति = आचरति = आचरण करता है।

आ + गच्छति = आगच्छति = आता है।

आ + रोहति = अरोहति = चढ़ता है।

१३. नि :

नि + वेदयति = निवेदयति = निवेदन करता है।

नि+ वर्तते = निवर्तते = लौटता है।

नि + विशति = निविशते = घुसता है।

नि + दधाति निदधाति = विश्वास रखता है।

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