Hindi, asked by guptaishika404, 8 months ago

उपवन से बातचीत कविता का शीर्षक आपको कैसा लगा? आप कोई अन्य शीर्षक बतलाइए​

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Answered by bhavikaarora73
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Answer:

आज सवेरे

           जब वसंत आया उपवन में चुपके-चुपके

कानों-ही-कानों मैंने उससे पूछा,

           "मित्र! पा गए तुम तो अपने यौवन का उल्लास दुबारा।

गमक उठे फिर प्राण तुम्हारे

            फूलों-सा मन फिर मुसकाया

पर साथी

            क्या दोगे मुझको ?

मेरा यौवन मुझे दुबारा मिल न सकेगा ?"

सरसों की उँगलियाँ हिलाकर संकेतों में वह यों बोला--

            "मेरे भाई !

व्यर्थ प्रकृति के नियमों की यों दो न दुहाई

             होड़ न बाँधो तुम यों मुझसे।

जब मेरे जीवन का पहला पहर झुलसता था लपटों में

             तुम बैठे थे बंद उशीर पटों से घिरकर

मैं जब वर्षा की बाढ़ों में डूब-डूब इतराया था

             तुम हँसते थे वाटर-प्रूफ कवच को ओढ़े,

और शीत के पाले में जब गलकर मेरी देह जम गई

             तब बिजली के हीटर से

तुम सेक रहे थे अपना तन-मन।

जिसने झेला नहीं, खेल क्या उसने खेला ?

             जो कष्टों से भागा, दूर हो गया सहज जीवन के क्रम से,

उसको दे क्या दान प्रकृतिकी यह गतिमयता

             यह नव बेला।

पीड़ा के माथे पर ही आनंद तिलक चढ़ता आया है।

            मुझे देखकर आज तुम्हारा मन यदि सचमुच ललचाया है।

तो कित्रिम दीवारें तोड़ो

            बाहर आओ

खुलो, तपो, भीगो, गल जाओ

            आँधी-तूफानों को सिर पर लेना सीखो।

जीवन का हर दर्द सहे जो 

            स्वीकारो हर चोट समय की

जितनी भी हलचल मचनी हो, मच जाने दो

            रस-विष दोनों को गहरे में पच जाने दो।

तभी तुम्हें भी धरती का आशीष मिलेगा

        तभी तुम्हारे प्राणों में भी यह पलाश का फूल खिलेगा।"

Answered by mistryjigneshshm
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