Hindi, asked by sharmadhruv968, 6 months ago

Uphar pridan ke liye bigyapan

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Answered by bagalruchita30
0

Answer:

what is this ..................

Answered by arunabalamohapatra
1

Answer:

ANSWER :)

मन को कितना भाते है,ये शीतल मंद हवा के झोंके..

मन को कितना भाते है,ये शीतल मंद हवा के झोंके..सूर्य रश्मियां, धवल चांदनी..

मन को कितना भाते है,ये शीतल मंद हवा के झोंके..सूर्य रश्मियां, धवल चांदनी..वो पर्वत पर इठलाते बादल,कलकल नदियों की मधुर रागिनी..

मन को कितना भाते है,ये शीतल मंद हवा के झोंके..सूर्य रश्मियां, धवल चांदनी..वो पर्वत पर इठलाते बादल,कलकल नदियों की मधुर रागिनी..कमी नहीं है,वसुंधरा पर,इन नैसर्गिक उपहारों की..

मन को कितना भाते है,ये शीतल मंद हवा के झोंके..सूर्य रश्मियां, धवल चांदनी..वो पर्वत पर इठलाते बादल,कलकल नदियों की मधुर रागिनी..कमी नहीं है,वसुंधरा पर,इन नैसर्गिक उपहारों की..हम सब मिलकर बने कृतज्ञ,कोई सीमा नहीं इन उपकारों की..

मन को कितना भाते है,ये शीतल मंद हवा के झोंके..सूर्य रश्मियां, धवल चांदनी..वो पर्वत पर इठलाते बादल,कलकल नदियों की मधुर रागिनी..कमी नहीं है,वसुंधरा पर,इन नैसर्गिक उपहारों की..हम सब मिलकर बने कृतज्ञ,कोई सीमा नहीं इन उपकारों की..प्रकृति के इन उपहारों का मिलकर हम सब करे सरंक्षण..

मन को कितना भाते है,ये शीतल मंद हवा के झोंके..सूर्य रश्मियां, धवल चांदनी..वो पर्वत पर इठलाते बादल,कलकल नदियों की मधुर रागिनी..कमी नहीं है,वसुंधरा पर,इन नैसर्गिक उपहारों की..हम सब मिलकर बने कृतज्ञ,कोई सीमा नहीं इन उपकारों की..प्रकृति के इन उपहारों का मिलकर हम सब करे सरंक्षण..तभी होगा वसुंधरा पर,अनंत काल तक जीवन रक्षण..

मन को कितना भाते है,ये शीतल मंद हवा के झोंके..सूर्य रश्मियां, धवल चांदनी..वो पर्वत पर इठलाते बादल,कलकल नदियों की मधुर रागिनी..कमी नहीं है,वसुंधरा पर,इन नैसर्गिक उपहारों की..हम सब मिलकर बने कृतज्ञ,कोई सीमा नहीं इन उपकारों की..प्रकृति के इन उपहारों का मिलकर हम सब करे सरंक्षण..तभी होगा वसुंधरा पर,अनंत काल तक जीवन रक्षण..हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।

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