Upma alankar ka example
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नदियां जिनकी यशधारा सी बहती है अब निशि -वासर
कुन्द इन्दु सन देह , उमा रमन वरुण अमन
मखमल के झूले पड़े हाथी सा टीला
उतर रही है संध्या सुंदरी पारी सी
पीपर पात सरिस मन डोला
अति मलिन वृषभानुकुमारी ,अधोमुख रहति ,उरध नहीं चितवत , ज्यों गथ हारे थकित जुआरी ,छूटे चिहुर बदन कुम्हिलानो , ज्यों नलिनी हिमकर की मारी
तब बहता समय शिला सा जम जायेगा
निर्मल तेरा अमृत के सम उत्तम है
सिंधु सा विस्तृत और अथाह एक निर्वासित का उत्साह
असंख्य कीर्ति रश्मियों विकीर्ण दिव्य दाह सी।
वह दीपशिखा सी शांत भाव में लीन
सहसबाहु सम रिपु मोरा
पट पिट मानहुँ तड़ित रूचि सूचि नौमी जनक सुतांवर
नभ मंडल छाया मरुस्थल सा दल बाँध के अंधड़ आवे चला।
चंवर सदृश दोल रहे सरसों के सर अनंत
कोटि कुलिस सम वचन तुम्हारा।
मृदुल वैभव की रखवाली सी
हो भरष्ट शील के से शतदल
माँ सरीखी अभी जैसे मंदिरों में चढ़कर खुशरंग फूल
एही सम विजय उपजा न दूजा
लघु तरनि हंसिनी सी सुन्दर
चाँद की सी उजली जाली
कमल सा कोमल गात सुहाना
स्वान रूप संसार हे
वेदना बोझिल सी
हरिपद कोमल कमल से
नीलोत्पल के बीच सजाये मोती से आंसूं के बून्द
भूली सी एक छुअन बनता हर जीवित छण
मुख बाल रवि सम होकर ज्वाला सा बोधित हुआ
दिवस का समय ,मेघ आसमान से उतर रही है ,वह संध्या सुंदरी सी ,धीरे धीरे।