'उसने कहा था 'कहानी की शिल्पगत विशेषताएं लिखिए
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भाषा भाव की संवाहक होती है एवं कथानक कितना भी अच्छा हो लेकिन भाषा यदि शिथिल हो तो कथानक नहीं उभर पाता है बंबूकाट वाले लड़के लड़की की भाषा भी पात्र अनुकूल है सिपाही शुद्ध शब्द का उच्चारण नहीं करते हुए लेफ्टिनेंट को लफटन साहब कहते हैं कभी-कभी उर्दू अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करते हैं । मुहावरों का प्रयोग भी सहज हुआ है जैसे दांत बज रहे, खेत ना रहे इत्यादिछोटे प्रयोग हुआ है । कथोकथन छोटे और पात्र अनुकूल है इनमें व्यग्यपुट का भी प्रयोग हुआ है इस प्रकार भाषा शैली की दृष्टि से यह कहानी श्रेष्ठ है
कहानी की विशेषताएं निम्न है
(1) कथानक – कहानी में सबसे अधिक प्रधानता कथानक की होती है। जिस कहानी का कथानक आकर्षक नहीं है उस कहानी में पाठक का मन लगेगा नहीं। उसने कहा था’ कहानी की विशेषता उसका कथानक है। कहानी आरम्भ से ही पाठक को पकड़ लेती है। इसका कथानक बड़ा मार्मिक है। इसी कारण यह हिन्दी साहित्य की बेजोड़ कहानी है। कहानी को कथानक निश्छल प्रेम, त्याग और कर्तव्यनिष्ठा पर आधारित है जो मृत्यु शैय्या पर जाकर समाप्त होता है। कहानी का आरम्भ निश्छल प्रेम से होता है, मध्य भाग में कर्तव्यनिष्ठा और सेवाभाव है। अन्त में पुनः त्याग और प्रेम है। कथानक इतना आकर्षक है कि पाठक पहली पंक्ति से ही कहानी का अन्त जानने के लिए उत्सुक हो जाता है। बचपन के प्रेम के बाद कहानी का कथानक अचानक पच्चीस वर्ष बाद पहुँच जाता है। जहाँ प्रथम विश्वयुद्ध की विभीषिका का वर्णन है। अन्त में नायक लहनासिंह का स्वप्न हृदय को छू जाता है और पाठक भावुक हो उठता है। कथानक सीधा-सपाट होते हुए भी बहुत आकर्षक है।
(2) शीर्षक – कभी-कभी शीर्षक इतना आकर्षक होता है कि पाठक उसे पढ़ते ही कहानी से अत्यधिक जुड़ जाता है। इस कहानी का भी शीर्षक बहुत आकर्षक है। तीन शब्दों का छोटा शीर्षक है किन्तु जिज्ञासात्मक है। शीर्षक को पढ़कर यह जिज्ञासी होती है कि किसने, किससे क्या कहा था? सम्पूर्ण कथावस्तु पढ़ने के पश्चात् ही शीर्षक पूर्णत: स्पष्ट होता है कि इससे अच्छा शीर्षक इस कहानी का नहीं हो सकता था।
(3) भाषा-शैली – कहानी की भाषा सरल है। आँचलिक शब्दों का; जैसे-बाछा, सालू, बर्रा, ओबरी आदि का प्रयोग अधिक है। कहीं-कहीं उर्दू और तत्सम शब्दों के प्रयोग भी मिल जाते हैं; जैसे-कयामत, क्षयी आदि। भाषा में मुहावरों का सहज रूप में प्रयोग हुआ है। कान पक गए, जीभ चलाना, कान के पर्दे फाड़ना, पलक न कॅपी आदि मुहावरे भाषा में इस तरह आ गए हैं जैसे मोतियों की माला में मणियाँ पिरो दी गई हों। शैली में कथोपकथन की प्रधानता है। कहानी का आरम्भ ही लड़के-लड़की के कथोपकथन से होता है। मध्य में जर्मन लपटन, सूबेदारे हजारासिंह और लहनासिंह के कथोपकथन हैं। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे छोटे और आकर्षक हैं।
(4) वातावरण का चित्रण – वातावरण कहानी का वह तत्त्व है जो कहानी को आकर्षक बनाता है। अमृतसर के भीड़ भरे बाजार के वातावरण से कहानी आरम्भ होती है। बम्बूकार्ट वाले किस प्रकार भीड़ में से निकलते हैं। इसका अच्छा वर्णन है। प्रथम विश्वयुद्ध का समय है। युद्ध के मैदान का यथार्थ वर्णन है। उसमें चित्रात्मकता है। वर्णन को पढ़कर आँखों के सामने युद्ध के मैदान का दृश्य उभर जाता
Answer:
उसने कहा था'..
कथानक :-1 कहानी में सबसे अधिक प्रधानता कथानक होती है। क्योंकि इस कहानी का कथानक बडा मार्मिक है
2. शीर्षक :- उस कहानी का शीर्षक बहुत आकर्षक है। क्योंकि शीर्षक को पढ़कर यह जिज्ञासा होती है कि किसने, किससे क्या कहा था? सम्पूर्ण कथावस्तु पढने के पश्चात् ही शीर्षक पूर्णत: स्पष्ट होता है
3. भाषा शैली :- कहानी की भाषा सरल है। इसमें आंचलिक शब्दों का प्रयोग, उर्दू शब्द, तत्सम शब्दों व मुहावरों का सहज रूप से प्रयोग.
4. वातावरण का चित्रण :- वातावरण कहानी को आकर्षक बनाता है। अमृतसर के भीड़ भरे बाजार के वातावरण से कहानी आरम्भ होती है। बम्बूकार्ट वाले किस प्रकार भीड़ में से निकलते हैं। इसका अच्छा वर्णन किया गया है।