usefulness of discipline in hindi
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समाज की सहायता के बिना मानव जीवन का अस्तित्व असम्भव है। सामाजिक जीवन को सुख संपन्न बनाने के लिए कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। इन नियमों को हम सामाजिक जीवन के नियम कहते हैं। इनके अंतर्गत मनुष्य व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से नियमित रहता है तो उसके जीवन को अनुशासित जीवन कहते हैं।
अनुशासन मानव-जीवन का आवश्यक अंग है। मनुष्य को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में चाहे वह खेल का मैदान हो अथवा विद्यालय, घर हो अथवा घर से बाहर कोई सभा-सोसायटी, सभी जगह अनुशासन के नियमों का पालन करना पड़ता है।
विद्यार्थी समाज की एक नव-मुखरित कली है। इन कलियों के अंदर यदि किसी कारणवश कमी आ जाती है तो कलियाँ मुरझा ही जाती हैं, साथ-साथ उपवन की छटा भी समाप्त हो जाती है। यदि किसी देश का विद्यार्थी अनुशासनहीनता का शिकार बनकर अशुद्ध आचरण करने वाला बन जाता है तो यह समाज किसी न किसी दिन आभाहीन हो जाता है।
परिवार अनुशासन की आरंभिक पाठशाला है। एक सुशिक्षित और शुद्ध आचरण वाले परिवार का बालक स्वयं ही नेक चाल-चलन और अच्छे आचरण वाला बन जाता है। माता-पिता की आज्ञा का पालन उसे अनुशासन का प्रथम पाठ पढ़ाता है।
परिवार के उपरांत अनुशासित जीवन की शिक्षा देने वाला दूसरा स्थान विद्यालय है। शुद्ध आचरण वाले सुयोग्य गुरुओं के शिष्य अनुशासित आचरण वाले होते हैं। ऐसे विद्यालय में बालक के शरीर, आत्मा और मस्तिष्क का संतुलित रूप से विकास होता है।
विद्यालय का जीवन व्यतीत करने के उपरांत जब छात्र सामाजिक जीवन में प्रवेश करता है तो उसे कदम-कदम पर अनुशासित व्यवहार की आवश्यकता होती है। अनुशासनहीन व्यक्ति केवल अपने लिए ही नहीं, समस्त देश व समाज के लिए घातक सिद्ध होता है।
अनुशासन का वास्तविक अर्थ अपनी दूषित और दूसरों को हानि पहुँचाने वाली प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करना है। अनुशासन के लिए बाहरी नियंत्रण की अपेक्षा आत्मनियंत्रण करना अधिक आवश्यक है। वास्तविक अनुशासन वही है जो कि मानव की आत्मा से सम्बन्ध हो क्योंकि शुद्ध आत्मा कभी भी मानव को अनुचित कार्य करने को प्रोत्साहित नहीं करती।
समाज की सहायता के बिना मानव जीवन का अस्तित्व असम्भव है। सामाजिक जीवन को सुख संपन्न बनाने के लिए कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। इन नियमों को हम सामाजिक जीवन के नियम कहते हैं। इनके अंतर्गत मनुष्य व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से नियमित रहता है तो उसके जीवन को अनुशासित जीवन कहते हैं।
अनुशासन मानव-जीवन का आवश्यक अंग है। मनुष्य को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में चाहे वह खेल का मैदान हो अथवा विद्यालय, घर हो अथवा घर से बाहर कोई सभा-सोसायटी, सभी जगह अनुशासन के नियमों का पालन करना पड़ता है।
विद्यार्थी समाज की एक नव-मुखरित कली है। इन कलियों के अंदर यदि किसी कारणवश कमी आ जाती है तो कलियाँ मुरझा ही जाती हैं, साथ-साथ उपवन की छटा भी समाप्त हो जाती है। यदि किसी देश का विद्यार्थी अनुशासनहीनता का शिकार बनकर अशुद्ध आचरण करने वाला बन जाता है तो यह समाज किसी न किसी दिन आभाहीन हो जाता है।
परिवार अनुशासन की आरंभिक पाठशाला है। एक सुशिक्षित और शुद्ध आचरण वाले परिवार का बालक स्वयं ही नेक चाल-चलन और अच्छे आचरण वाला बन जाता है। माता-पिता की आज्ञा का पालन उसे अनुशासन का प्रथम पाठ पढ़ाता है।
परिवार के उपरांत अनुशासित जीवन की शिक्षा देने वाला दूसरा स्थान विद्यालय है। शुद्ध आचरण वाले सुयोग्य गुरुओं के शिष्य अनुशासित आचरण वाले होते हैं। ऐसे विद्यालय में बालक के शरीर, आत्मा और मस्तिष्क का संतुलित रूप से विकास होता है।
विद्यालय का जीवन व्यतीत करने के उपरांत जब छात्र सामाजिक जीवन में प्रवेश करता है तो उसे कदम-कदम पर अनुशासित व्यवहार की आवश्यकता होती है। अनुशासनहीन व्यक्ति केवल अपने लिए ही नहीं, समस्त देश व समाज के लिए घातक सिद्ध होता है।
अनुशासन का वास्तविक अर्थ अपनी दूषित और दूसरों को हानि पहुँचाने वाली प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करना है। अनुशासन के लिए बाहरी नियंत्रण की अपेक्षा आत्मनियंत्रण करना अधिक आवश्यक है। वास्तविक अनुशासन वही है जो कि मानव की आत्मा से सम्बन्ध हो क्योंकि शुद्ध आत्मा कभी भी मानव को अनुचित कार्य करने को प्रोत्साहित नहीं करती।
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