"उषा " कविता में " भोर के नभ " की तुलना किससे की गई है और क्यों ?
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➲ ‘उषा’ कविता में ‘भोर के नभ’ की तुलना ‘राख से लीपे हुए चौके’ से की गई है।
व्याख्या ⦂
✎... ‘उषा’ कविता में कवि शमशेर सिंह ने ‘भोर के नभ’ की तुलना सुबह के समय लीपे हुए चौके से की है। कवि के अनुसार ‘भोर का नभ’ ऐसा प्रतीत हो रहा है, जैसे सुबह के समय लीपा हुआ चौका दिखा देता है। भोर के समय चारों तरफ धुंध छाई हुई होती है और सूरज पूरी तरह से निकला नहीं होता है। इस कारण भोर का नभ मटमैला सा दिखाई पड़ता है। यह मटमैला रंग बिल्कुल उसी तरह का दिखाई पड़ता है जैसे सुबह के समय घरों में चौका लीपा हुआ हो। लीपे हुए चौके का रंग और भोर के नभ का रंग एक समान दिखाई पड़ रहा है।
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