उषा प्रिया वंदा की वापसी कैसी कहानी है उत्तर दीजिए
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निष्कर्ष :- ‘वापसी’ आधुनिक युग के वास्तविक यथार्थ को प्रस्तुत करती है कहानी यह दर्शाती है कि आधुनिक पीढ़ी के लिए परिवार में पुराने मूल्यों की तरह पिता का भी कोई स्थान नहीं रह गया है। वह पत्नी व बच्चों के लिए केवल धनोपार्जन के निमित्त पात्र मात्र बन गया है। पत्नी भी जिस व्यक्ति के अस्तित्व से पत्नी मांग में सिंदूर डालने की अधिकारिणी है तथा समाज में प्रतिष्ठा पाती है। उसके सामने वह दो वक्त भोजन की थाली रख देने से ही अपने सारे कर्तव्यों से छुट्टी पा जाती है। गजाधर बाबू की परेशानी यह है कि वह जीवन यात्रा के अतीत के पन्नों को पुनः वैसे ही जीना चाहते हैं किन्तु अब ये संभव नहीं है। क्योंकि अब उनके लिए घरौर परिवार में कोई जगह नहीं है। इसप्रकार यह कहानी वर्तमान युग मे बिखरते मध्यवर्गीय परिवार की त्रासदी तथा मूल्यों के विघटन की समस्या पर प्रकाश डालती है।
सन्दर्भ सहित स्पष्टीकरण: -
“उन्होंने अनुभव किया कि वह पत्नी और बच्चों के लिए केवल धनोपार्जन के निमित्त मात्र हैं जिस व्यक्ति के अस्तित्व से पत्नी माँग से सिन्दूर डालने की अधिकारिणी है, समाज में उसकी प्रतिष्ठा है, उसके सामने वह दो वक़्त भोजन की थाली रख देने से सारे कर्तव्यों से छुट्टी पा जाती है।“
संदर्भ:- प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रथम वर्ष कला हिन्दी के पाठ्यपुस्तक ‘श्रेष्ठ हिंदी कहानियां’ में निर्धारित कहानी ‘वापसी’ से ली गयी हैं। इस कहानी की लेखिका ‘उषा प्रियंवदा’ जी हैं। लेखिका ने इस कहानी में गजाधर बाबू के रूप में नौकरी से सेवानिवृत्त हो कर घर लौटे पुरुष मन की व्यथा का चित्रण किया है।
प्रसंग:- प्रस्तुत अवतरण द्वारा लेखिका यह दर्शाती हैं कि गजाधर बाबू घर के अव्यवस्था के संदर्भ में अपनी पत्नी से बात करना चाहते हैं, लेकिन उनकी पत्नी अपने पति की बातों को समझने की बजाय उन्हें बच्चों के मामले में हस्तक्षेप न करने की बात करती है। जिससे गजाधर बाबू का मन बहुत दुखी हो जाता है।
व्याख्या:- लेखिका गजाधर बाबू के घर की बिगड़ी हुई स्थिति का वर्णन करते हुए बताती हैं कि गजाधर बाबू परिवार के लोगों के लिए धन पाने का जरिया रह गए हैं। उन्होंने अपने जीवन के पैंतीस साल नौकरी करते हुए अपने घर से दूर रह कर बिताये और आज उसी नौकरी से सेवानिवृत्त होकर जब वह अपने घर आते हैं तो देखते है कि परिवार में लौटने पर उन्होंने अपने लोगों से जो अपेक्षा की थी वैसा यहाँ कुछ भी नहीं है। वे समझ जाते हैं कि यहां पर ऐसा कोई भी नहीं है जो उनकी मन की स्थिति को समझे अथवा उनका साथी बने। गजाधर बाबू यह अनुभव करते हैं, कि अब उनकी पत्नी का लगाव भी उनके प्रति उतना नहीं रहा जितना कि पहले हुआ करता था। पत्नी की इस व्यवहार से गजाधर बाबू अत्यंत दुखी हो जाते हैं। पत्नी उनके सामने दो वक्त के भोजन की थाली रख कर अपने सारे कर्तव्य से छुट्टी पा जाती है। यह देख कर पत्नी और बच्चों के साथ रहने की इच्छा समाप्त हो जाती है गजाधर बाबू को इस बात का आघात लगता है कि उनके अपने ही घर में उनके लिए कोई स्थान नहीं है। इसलिए वे परिवार में हस्तक्षेप करना बंद कर देते हैं और एकांत एक चारपाई पर पड़े रहकर अपने स्थिति को सुधारने के लिए उपाय खोजते रहते हैं।
विशेष:- ‘वापसी’ कहानी पुरुष पर केन्द्रित कहानी है। गजाधर बाबू कहानी के मुख्य पात्र होने के साथ परिवार के मुखिया भी हैं किन्तु अपने ही परिवार में वे उपेक्षित हो कर जीने पर विवश हैं। स्नेही स्वभाव के व्यक्ति होने पर भी वे परिवार के स्नेह से वंचित हैं। परिवार से जुड़ कर जीने की इच्छा को मन में लिए घर लौटे तो हैं फिर भी परिवार के बीच अकेले जीने पर विवश हैं।
Explanation:
Answer:
उन्होंने शहर में एक मकान बनवा लिया था¸ बड़े लड़के अमर और लडकी कान्ति की शादियाँ कर दी थीं¸ दो बच्चे ऊँची कक्षाओं में पढ़ रहे थे। गजाधर बाबू नौकरी के कारण प्राय: छोटे स्टेशनों पर रहे, और उनके बच्चे तथा पत्नी शहर में¸ जिससे पढ़ाई में बाधा न हो। गजाधर बाबू स्वभाव से बहुत स्नेही व्यक्ति थे और स्नेह के आकांक्षी भी।