Usma gatiki ka Pratham Niyam ka ullekh kijiye tatha Vakya kijiye uska bhautik mahatva bataiye
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ऊष्मागतिकी का प्रथम (पहला) नियम “किसी भी निकाय की आन्तरिक ऊर्जा दो भागो के बराबर होती है एक तो निकाय द्वारा किया गया कार्य और दूसरा निकाय द्वारा निकली या प्रवेश ऊष्मा। ”
अर्थात जब किसी निकाय को बाहर से ऊष्मा दी जाती है तो निकाय द्वारा अवशोषित ऊष्मा का मान निकाय की आंतरिक ऊर्जा में आई वृद्धि और निकाय द्वारा किये गए कार्य के योग के बराबर होती है इसे ही ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम कहते है।
ऊष्मागतिकी, भौतिक रसायन की वह शाखा है, जिसके अंतर्गत हम भौतिक तथा रासायनिक प्रक्रमों में होने वाले ऊर्जा के परिवर्तनोँ का अध्ययन करते हैं।
अत: सीधे शब्दों में कहे तो उष्मागतिकी शाखा के अंतर्गत हम ताप , ऊष्मा , कार्य और इनके के मध्य सम्बन्ध स्थापित करते है , जैसे कि हम जानते है की उष्मीय उर्जा का रूपांतरण अन्य रूपों में भी संभव है जैसे विद्युत , चुम्बकीय आदि , अर्थात विद्युत में ऊष्मा उत्पन्न होती है और ऊष्मा से विद्युत उत्पन्न की जा सकती है , ऊष्मा उर्जा के इस रूपांतरण का अध्ययन भी हम यहाँ इस शाखा में करते है।
ऊष्मा गतिकी में हम ऊर्जा के एक स्थान से दुसरे स्थान पर स्थानांतरण तथा एक फॉर्म से दूसरी फॉर्म में रूपांतरण का भी अध्ययन करते है।
ऊष्मा गतिकी दो शब्दों से मिलकर बना है पहले ऊष्मा = thermo और दूसरा गतिकी = dynamics , अर्थात ऊष्मा की गति।
कहने का तात्पर्य यह है कि इसमें ऊष्मा की गति का अध्ययन किया जाता है।