Economy, asked by modakmangal4, 2 months ago

उत्पादन के कौन-कौन से साधन है​

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Answered by ayushgupta17dec
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अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र में, उत्पादन के साधन (अंग्रेज़ी: Means of production) भौतिक, गैर-मानवी इनपुट होते हैं, जिनका उपयोग आर्थिक मूल्य के उत्पादन हेतु होता हैं, जैसे कि, सुविधाएँ, मशीनरी, उपकरण,[1] संरचनात्मक पूंजी और प्राकृतिक पूंजी।

उत्पादन के साधनों में वस्तुओं की दो व्यापक श्रेणियाँ मौजूद हैं : श्रम के साधन (उपकरण, फ़ैक्ट्री, संरचना, इत्यादि) और श्रम के विषय (प्राकृतिक संसाधन और कच्चा माल)। अगर वस्तु बना रहें हैं, तो लोग श्रम के साधनों का उपयोग करके श्रम के विषयों पर काम करते हैं, उत्पाद बनाने के लिए; या अन्य शब्दों में, उत्पादन के साधनों पर काम करता श्रम, उत्पाद निर्माण करता हैं।[2]

Answered by rounak111singh111
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प्रो. बेन्हम के अनुसार, “कोई भी वस्तु जो उत्पादन में मदद पहुँचाती है, उत्पादन का साधन है।” अर्थात् उपयोगिताओं या मूल्यों के सृजन में जो तत्व मददगार होते हैं वे उत्पादन के साधनों के रूप में जाने जाते हैं। प्रो. मार्शल के अनुसार, “मानव भौतिक वस्तुओं का निर्माण नहीं कर सकता । वह तो अपने श्रम से उपयोगिताओं का सृजन कर सकता है।” भौतिक वस्तुयें प्रकृति की नि:शुल्क देन होती हैं। इन्हें भूमि कहते हैं । इस तरह मुख्य रूप से भूमि एवं श्रम . उत्पादन के दो साधन होते हैं।

प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने भूमि एवं श्रम के अतिरिक्त पूँजी को भी उत्पादन का साधन मानकर उत्पादन के तीन साधन बताये थे। उनके विचार में भूमि उत्पादन का आधारभूत साधन होता है जिसे आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु श्रम की मदद से प्रयोग किया जाता है। उन्होंने भूमि को उत्पादन का निष्क्रिय साधन माना एवं श्रम को सक्रिय साधन माना। आगे चलकर उन्होंने पूँजी को उत्पादन का एक साधन बताया। उनके अनुसार उत्पादन में सबसे पहले भूमि को हिस्सा मिलता है, इसके पश्चात् श्रम को तथा अंत में पूँजी को।

Explanation:

बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था की सफलता को ध्यान में रखकर मार्शल ने संगठन को भी उत्पादन का एक साधन माना। संगठन की व्याख्या उन्होंने प्रबन्ध एवं साहस के रूप में की। इस तरह भूमि, श्रम, पूजी, प्रबन्ध एवं साहस उत्पादन के पाँच साधन होते हैं।

(1) भूमि- अर्थशास्त्र में भूमि शब्द का बड़ा व्यापक अर्थ होता है। पृथ्वी की ऊपरी सतह की भूमि नहीं कहलाती वरन् भू-गर्भ में एवं भू के ऊपर जो-जो भी प्रकृति द्वारा प्रदत्त निःशुल्क देन विद्यमान हैं वे भूमि की श्रेणी में आती हैं। प्रो. मार्शल के अनुसार, “भूमि का अभिप्राय उन सब पदार्थों एवं शक्तियों से है जो प्रकृति के मानव को निःशुल्क उपहार के रूप में प्रदान की हैं। इस तरह सूर्य, चन्द्रमा, जंगल, नदी, पहाड़, समुद्र, भूमि की ऊपर सतह एवं खनिज, सम्पदा आदि सभी भूमि के अन्तर्गत आते हैं।

(2) श्रम- मनुष्य द्वारा धनोत्पादन की दृष्टि से किये गये सभी मानसिक तथा शारीरिक प्रयत्न श्रम की श्रेणी में आते हैं। मार्शल के अनुसार, “ये प्रयत्न प्रत्यक्ष आनन्द की दृष्टि से न किये जाकर पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से धनोत्पादन की दृष्टि से किये जाते हैं।” भूमिं तो उत्पादन का एक निष्क्रिय साधन है। इसके प्रयोग से उपयोगिताओं का सृजन श्रम द्वारा होता है । इस तरह श्रम उत्पादन का एक सक्रिय तथा अपरिहार्य साधन है।

(3) पूँजी- उत्पत्ति का कुछ भाग अप्रत्यक्ष रूप से आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु बचाकर रख लिया जाता है, जिसकी मदद से भविष्य में उत्पादन के लिए यन्त्र, मशीनें, कच्चा माल, श्रम के पारिश्रमिक भुगतान आदि की व्यवस्था की जाती है। इस तरह उपार्जित धन का वह भाग जो ज्यादा धन उत्पादन प्राप्त करने हेतु प्रयोग किया जाता है, पूँजी कहलाता है। प्रो. मार्शल के शब्दों में प्रकृति की निशुल्क देन के अतिरिक्त पूँजी मनुष्य द्वारा उत्पादित सम्पत्ति का वह भाग है जो ज्यादा धन उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है। वर्तमान बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था में पूँजी भी उत्पादन का एक अति महत्वपूर्ण साधन है।

(4) प्रबन्ध अथवा संगठन- बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधन बहुत बड़ी मात्रा में प्रयोग किये जाते हैं। इनसे सुचारु रूप से काम लेने के लिए एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत होती है जो उत्पत्ति के पैमाने के अनुसार, भूमि, श्रम एवं पूँजी की व्यवस्था करके कम से कम लागत पर अच्छे-से-अच्छा उत्पादन कर सकता है। वह व्यक्ति ही संगठनकर्ता के रूप में जाना जाता है। इस तरह आधुनिक बड़े पैमाने की प्रतिस्पर्धात्मक अर्थव्यवस्था में संगठनकर्ता उत्पादन की सफलता हेतु उत्पादन का एक अनिवार्य साधन बनता जा रहा है ।

(5) साहस- उत्पादन के बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था में उत्पादक के व्यक्तिगत साधन अपर्याप्त रहते हैं। इसलिए इन्हें विभिन्न व्यक्तियों से जुटाकर उत्पादन चलाया जाता है। उत्पादन में भूमि, श्रम, पूँजी एवं प्रबन्ध के रूप में जिन-जिन व्यक्तियों ने सहायता पहुँचाई है उन्हें उनकी सहायतानुसार प्रतिफल चुकाते रहने की जोखिम जो व्यक्ति उठाता है एवं हानि-लाभ का उत्तरदायित्व लेता वह साहसी कहलाता है। बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता एवं जोखिम बनी रहती है। साहसी इन्हें वहन करके उत्पादन के अन्य साधनों को उनके पारिश्रमिक की दृष्टि से निश्चित करने का जो गुरुतर भार उठाता है उसके कारण वह भी उत्पादन का एक अत्यावश्यक साधन हो ।

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