उत्पादन के संगठन के प्रकार बताइए तथा उनका विस्तृत वर्णन कीजिए ।.
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उत्पादन संगठन, या उत्पादन का संगठन, माल की निर्माण प्रक्रिया को शामिल करने वाले व्यवसायों के दिल में है।
मूल उत्पादन संगठन
घरेलू अर्थव्यवस्था भूमि, श्रम और पूंजी से मिलकर उत्पादन संगठन का सबसे सरल रूप है, जो एक ही व्यक्ति द्वारा स्वामित्व और नियंत्रण में है। आप उत्पादन संगठन के इस स्तर में संलग्न हो सकते हैं, उदाहरण के लिए, अपने परिवार को संगठित करके, कृषि उत्पादों का उत्पादन करने के लिए श्रम और तकनीकी सलाह देने के लिए घर का भोजन प्रदान करने के लिए।
श्रम और प्रौद्योगिकी
उत्पादन संगठन के मूल में श्रम और उपकरण दोनों के श्रम और विशेषज्ञता का विभाजन है। श्रम का विभाजन और विशेषज्ञता वह प्रक्रिया है जिसमें आपके कार्यकर्ता उत्पादन कार्यों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो वे अच्छी तरह से कुशल हैं।
कम उत्पादन
झुक उत्पादन एक शब्द है जो उत्पादन संगठन के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है। दुबला उत्पादन के लिए एक और शब्द टोयोटा उत्पादन प्रणाली है, क्योंकि यह टोयोटा कॉर्प है जिसने दुबला उत्पादन सिद्धांत विकसित किया है।
किसी भी उपक्रम के संगठन का निर्माण करने के लिए जो आवश्यक कदम उठाये जाते हैं, वे निम्न प्रकार से हैं -
(1) उद्देश्यों का निर्धारण करना -संगठन प्रक्रिया का प्रथम कदम संस्था के उद्देश्यों का निर्धारण करना है। संस्था के उद्देश्यों के निर्धारण के अभाव में संगठन का कोई महत्त्व नहीं रहता। वास्तव में संगठन का अपने आप में कोई उद्देश्य नहीं होता, यह तो उद्देश्यों की प्राप्ति का साधन है।
(2) कार्यों को परिभाषित करना - कार्यों को परिभाषित करते समय संस्था द्वारा किये जाने वाले समस्त कार्यों को परिभाषित किया जाता है। कार्यों को परिभाषित करते समय संस्था के उद्देश्यों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। प्रत्येक कार्य को उपकार्यों में विभाजित किया जाता है जिससे कि उने कर्मचारियों में बाँटा जा सके और उनका दायित्व निर्धारित किया जा सके।
(3) कर्मचारियों के मध्य कार्य का विभाजन - क्रियाओं को श्रेणीबद्ध करने के उपरान्त अगला कदम है, कार्यों का कर्मचारियों के मध्य विभाजन करना। कार्य विभाजन में कर्मचारियों की रूचि, शारीरिक क्षमता, शैक्षणिक योग्यता, कार्य अनुभव आदि को ध्यान में रखना आवश्यक होता है।
(4) समन्वय - संगठन संरचना की अन्तिम प्रक्रिया है। विभिन्न विभागों के बीच समन्वय स्थापित करना, जिससे कि उपक्रम के समस्त विभाग एकजुट होकर संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति में प्रयत्नशील हो सकें। विभिन्न विभागों के बीच सम्बन्धों को परिभाषित करना ही संगठन प्रक्रिया की अन्तिम कड़ी होती है।
(5) क्रियाओं को श्रेणीबद्ध करना - समान प्रकृति अथवा सम्बन्धित क्रियाओं को श्रेणीबद्ध किया जाता है। क्रियाओं के श्रेणीबद्ध करने से विभागों तथा उपविभागों का निर्माण होता है।
(6) व्युत्पन्न उद्देश्यों, नीतियों तथा योजनाओं का निर्माण
(7) क्रियाओं का उपलब्ध मानवीय एवं भौतिक साधनों की दृष्टि से श्रेणीबद्ध करना जिससे कि साधनों का अधिकतम उपयोग हो सके।
(8) क्रियाओं की विभिन्न श्रेणियों का परस्पर गठबन्धन। इस प्रकार का गठबन्धन क्षितिजीत तथा ऊध्वधिर हो सकता है।
(9) अधिकारों का प्रत्यायोजन - कर्मचारियों के मध्य कार्य वितरण द्वारा उन्हें कार्य सम्पादन व उत्तरदायित्व सौंप दिया जाता है। उत्तरदायित्व की पूर्ति के लिए उत्तरदायित्व के अनुरूप अधिकार भी कर्मचारियों को सौंपे जाने चाहिए।
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