Hindi, asked by dd8085391gmailcom, 7 hours ago

उत्परिवर्तजन किसे कहते हैं ?​

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Answered by XxDREAMKINGxX
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Answer

जब किसी जीन के डीऐनए में कोई स्थाई परिवर्तन होता है तो उसे उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) कहा जाता है। यह कोशिकाओं के विभाजन के समय किसी दोष के कारण पैदा हो सकता है या फिर पराबैंगनी विकिरण की वजह से या रासायनिक तत्व या वायरस से भी हो सकता है।

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उत्परिवर्तन कितने प्रकार के होते हैं

  • जीन या बिंदु उत्परिवर्तन
  • अलिंगसूत्री अप्रभावी उत्परिवर्तन (autosomal recessive mutation)
  • प्रतिलोम उत्परिवर्तन
  • आरोपित उत्परिवर्तन

उत्परिवर्तन

जीन डी एन ए के न्यूक्लियोटाइडओं का ऐसा अनुक्रम है, जिसमें सन्निहित कूटबद्ध सूचनाओं से अंततः प्रोटीन के संश्लेषण का कार्य संपन्न होता है। यह अनुवांशिकता के बुनियादी और कार्यक्षम घटक होते हैं। यह यूनानी भाषा के शब्द जीनस से बना है। क्रोमोसोम पर स्थित डी.एन.ए. (D.N.A.) की बनी अति सूक्ष्म रचनाएं जो अनुवांशिक लक्षणें का धारण एंव एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरण करती हैं, उन्हें जीन (gene) कहते हैं।

जीन आनुवांशिकता की मूलभूत शारीरिक इकाई है। यानि इसी में हमारी आनुवांशिक विशेषताओं की जानकारी होती है जैसे हमारे बालों का रंग कैसा होगा, आंखों का रंग क्या होगा या हमें कौन सी बीमारियां हो सकती हैं। और यह जानकारी, कोशिकाओं के केन्द्र में मौजूद जिस तत्व में रहती है उसे डीऐनए कहते हैं। जब किसी जीन के डीऐनए में कोई स्थाई परिवर्तन होता है तो उसे उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) कहा जाता है। यह कोशिकाओं के विभाजन के समय किसी दोष के कारण पैदा हो सकता है या फिर पराबैंगनी विकिरण की वजह से या रासायनिक तत्व या वायरस से भी हो सकता है

प्रकृति के परिवर्तन में आण्विक डीएनए म्यूटेशन हो सकता है या नहीं कर सकते मापने में परिवर्तन के परिणामस्वरूप एक जावक जीव की उपस्थिति या कार्य है

उत्परिवर्तन के कारण

उत्परिवर्तन क्यों होते हैं, इसका संतोषजनक उतर जीव वैज्ञानिकों के पास उपलब्ध नहीं है। हाँ, इन लोगों ने कुछ ऐसी विधियाँ निकाली हैं, जिनके द्वारा कृत्रिम या आरोपित ढंग से उत्परिवर्तन किए जा सकते हैं। आरोपित उत्परिवर्तन सर्वदा बाहरी कारणों से ही हो सकता है, जिन्हें हम नीचे दी गई कोटियों में वर्गीकृत कर सकते हैं:-

तापक्रम-जननकोशिकाओं में सहनबिंदु तक तापक्रम में वृद्धि कर दी जाए तो उत्परिवर्तन की गति बढ़ जाएगी

रसायन-सरसों के तेल का धुआँ, फार्मैल्डिहाइड पेराक्साइड, नाइट्रस अम्ल आदि का प्रयोग करने पर उत्परिवर्तन दर में वृद्धि हो सकती है।

विकिरण-एक्सकिरण, गामा, बीटा, अल्ट्रावायलेट किरणों आदि के प्रयोग से भी उत्परिवर्तन दर में वृद्धि हो जाती है। स्वर्गीय प्रोफेसर एच.जे.मुलर ने इस कारक पर अनेक अद्भुत अनुसंधान किए हैं

वायुमंडल में असाधारण रूप से परिवर्तन करके उत्परिवर्तन दर में वृद्धि बढाई जा सकती है

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