उत्साह ' एवं 'अट नहीं रही हैं ' कविताओं के आधार पर कवि की भाषा शैली पर टिप्पणी कीजिए
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‘उत्साह’ एवं ‘अट नहीं रही हैं’ कविताओं के आधार पर कवि की भाषा शैली का विवेचन...
‘उत्साह’ कविता और ‘अट नहीं रही है’ कविता सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित कविताएं हैं। इन कविताओं के माध्यम से कवि ने यद्यपि प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन किया है, लेकिन प्रकृति के सौंदर्य वर्णन के माध्यम से उन्होंने प्रकृति के तत्वों को प्रतीक बनाकर विशिष्ट संदेश देने का भी प्रयास किया है।
‘उत्साह’ एवं ‘अट नहीं रही है’ कविता में कवि निराला ने खड़ी बोली में अपना काव्य सृजन किया है और इसके साथ-साथ उन्होंने संस्कृत शब्दों का भी भली-भांति प्रयोग किया है। जहाँ ‘उत्साह’ कविता में कवि ने ने बादलों को क्रांति का प्रतीक बनाकर उन्हें लोगों के दुखों एवं कष्टों को समाप्त करने वाला बताया है, वहीं ‘अट नहीं रही है’ कविता में उन्होंने प्रकृति के प्रकृति के तत्वों को मानवीय रूप में परिवर्तित कर सामाजिक परिवर्तन के मार्गदर्शक का प्रतीक बनाया है।
कवि निराला जी ने दोनों कविता में उन्होंने मानवीकरण अलंकार और अनुप्रास अलंकार का भली-भांति प्रयोग किया है। दोनों कविताओं में उन्होंने प्रकृति की कोमलता, सुंदरता और प्रकृति की मनोरम आभा का सजीव चित्रण किया है। इस तरह कवि की भाषा शैली सरल और सहज बन गई है और पाठकों के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ती है।
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