उत्तम जन के संग में, सहजे ही सुखभासि।
जैसे नृप लावै इतर, लेत सभा जनवासि।।
bhaav
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bhai bata to sahi question mein karna kya hai
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उत्तम जन के संग में, सहजे ही सुखभासि।
जैसे नृप लावै इतर, लेत सभा जनवासि।।
इस दोहे का भाव इस प्रकार है :
- उत्तम जन अर्थात अच्छे और सज्जन पुरुष की संगति करने से हमें भी सुख मिलता है। हमारा भला होता है। हमें भी उसके गुण मिलते गई। जिस प्रकार किसी राजा के इत्र लगाने से पूरी प्रजा को सुगंध या खुशबू मिलती है।
- यह दोहा अमरवाणी रचना से लिया गया है। इस काव्य में कबीर जी तथा कवि वृंद के दोहे है।
- अमरवाणी में अन्य दोहे भी है जो संत कबीर जी ने लिखे है । एक दोहे में संत कबीर कह रहे है कि हे प्रभु मुझे संसार के ऐश इशरत के साधन नहीं चाहिए परन्तु मुझे इतना अवश्य देना जिससे मै अपने परिवार का पेट पाल सकू। मै भी भूखा ना रहूं तथा अन्य जो कोई मेरे घर आए मै उसे भी खाना खिला सकूं।
- दूसरे दोहे में कबीर जी कहते है कि दुख में तो सभी सिमरन करते है लेकिन प्रभु का सच्चा भक्त वहीं है जो सुख में भी सिमरन करे। हमें हमेशा उस मालिक को याद करना चाहिए।
#SPJ3
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