उत्तर भारत में सिंचाई का मुख्य स्रोत कौन सा है
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uttar bharat me sichayi ka mukhya srot nalkup aur mehra h
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उत्तर भारत में सिंचाई का मुख्य स्रोत कौन सा है |
- नलकूप उत्तर प्रदेश में सिंचाई का मुख्य स्रोत है। नलकूप के माध्यम से सिंचाई 1930 में शुरू हुई। उत्तर प्रदेश की सबसे पुरानी नहर शाहजहाँ द्वारा बनाई गई पूर्वी यमुना नहर है। नलकूप (ट्यूबवेल्ल) शब्द स्वयं यह स्पष्ट करता है कि नल के द्वारा एक कूप का सृजन हुआ है। जब धातुके नल को जमीन में इतना धसा देते हैं कि वह जलस्तर तक पहुँच जाय तो इस प्रकार नलकूप का निर्माण होता है। नलकूपों पर मशीन-चालित पम्प लगाकर उनसे पानी निकाला जाता है और उसे पीने के काम में या सिचाई के काम में लिया जाता है।
- वैसे कूप अथवा कुएँ, पृथ्वी को खोदकर बनाए जाते रहे हैं और कहीं-कहीं उनमें सीढ़ियाँ लगाकर "बावली" का रूप भी दिया जाता रहा है। ऐसे कुँए विशेषकर उन्हीं स्थलों में बनाए जाते हैं जहाँ भूगर्भ में ऐसे रेतीले स्रोत हों जिनमें पानी मिल सके। ये स्रोत भी जलप्लावित हों और इतनी गहराई पर न हों कि सामान्य खुदाई द्वारा उन तक पहुँचना असंभव हो अथवा उन तक पहुँचने के लिए किसी चट्टान या कंकड़ों के स्तर को पार करना पड़े।
- इधर वर्तमान युग में जब नलों का, विशेषकर धातु के नलों का बनना संभव हो सका है तब फिर ऐसे जलस्रोतों तक पहुँचना भी संभव हुआ जिन तक साधारणतया खुदाई द्वारा पहुँच नहीं सकते। अब तो पृथ्वी की सतह से ही नलों को पृथ्वी में गलाने से जलस्तरों तक पहुँचना आसान हो गया है। इसी प्रकार नलकूपों का बनना प्रारंभ हुआ। एक त्रिपाद लगाकर पृथ्वी में ठोंक ठोंककर "वोकी" द्वारा नल गलाया जाता है। जब पानी तक नल पहुँच जाता है तब उसमें एक छोटे व्यास का नल बड़े व्यास के नल के अंदर उतारा जाता है। इस छोटे नल के निचले सिरे पर जाली लगा दी जाती है जिसमें होकर पानी नल में आ सके। इस नल के ऊपर हाथ से चलनेवाला पंप लगा दिया जाता है। इस प्रकार सामान्य घरेलू नलकूप बन जाता है। ये सर्वत्र ही प्रयोग में आते हैं।
- जब अधिक मात्रा में जल निकालने की आवश्यकता हुई जैसे बड़ी जलप्रदाय योजनाओं के लिए अथवा भूसिंचन या अन्य उद्योगों के लिए, तब नलकूपों का विस्तार करने की योजना में अत्यधिक विकास हुआ। बड़े बड़े नलकूपों के निर्माण के लिए यह आवश्यक होता है कि पहले पृथ्वी में एक बड़े नल के द्वारा अथवा अन्य साधनों द्वारा गहरा गोल छिद्र किया जाए और उस छिद्र से इसका अनुमान किया जाए कि ऐसे कितने स्तर मिलते हैं जो जलप्लावित हैं और उनकी मोटाई कितनी है। उदाहरण के लिए, एक सामान्य सिंचाई के नलकूप के लिए उत्तर प्रदेश के गंगा-यमुना-दोआब में पहले दस या आठ इंच परिधि का 300, 350 या 400 फुट गहरा छिद्र किया जाता है।
- छिद्र करते समय यह अनुमान किया जाता है कि किस प्रकार के स्तरों को भेदकर छिद्र गया है और उनसे निकाले हुए नमूनों की परीक्षा पर यह निर्णय किया जाता है कि उनके कौन से स्तर जल से भरे हो सकते हैं। यदि लगभग 100 फुट का ऐसा स्तर मिल जाता है तो अच्छी मात्रा में उस छिद्र से जल प्राप्त होने की आशा की जाती है। वैसे पानी मिल सकने की मात्रा का अनुमान तो पानी निकालने पर ही किया जा सकता है किंतु बहुत सी बातें इस संबंध में अनुभव के ऊपर ही निर्भर करती हैं।
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