उत्तर बहुविकल्पीय उत्तर से चुन कर लिखिए -
क) भाषा जो कभी बहता हुआ नीर होती थी ,उससे दिनों दिन जिंदगी का ताप गायब होता जा रहा है |वह शब्द जो हमें अपनी मिटटी से जोड़ते थे , अब हाशिये पर भी दिखाई नहीं देते | जिंदगी के मुहावरे और लोकोक्तियाँ शायद शब्दकोष में सीमित रह गए हैं | आपसी बोली - बानी पर कृत्रिम भाषा का कब्ज़ा हो गया है | हम केवल जबान एन्ठने वाली भाषा बोलते हैं जिसमें अपनेपन की हरारत नहीं होती | आज जिंदगी , कविता और दुनिया से वे शब्द निकाले जा रहे हैं , जो संवाद का पुल बनाते थे |
आज न जीवन में आँचल जैसा शब्द है न ही भाषा में : आँचल दामन बना और अब तो दामन भी तार - तार है | नई पीढ़ी परम्परा से चले आ रहे शब्दों से पूरी तरह अनजान है , उसे बढ़ी मुश्किल से टॉवल के बाद तौलिया तो समझ आता है , साफी नहीं | एक मुहावरा था - बखिया उधेड़ना | जब कपडे की " बखिया " उधडती थी तब तुरपाई भी की जाती थी , आज सब कुछ " स्टिचिंग " है | अब भी समय है हमें भाषा से गायब होती जिन्दगी को बचाना है :बचाना है उन शब्दों को जिन्दगी को गर्माहट देते हैं | मिटटी से जोड़ने वाले शब्द से तात्पर्य है -
क) हमारी पहचान बताने वाले शब्दRequired to answer.
i हमारी पहचान बताने वाले शब्द
ii नए - नए शब्द
iii खेती -किसानी के शब्द
2.ख) आजकल हमारी ज़बान में अपनापन नहीं है , क्योंकि हम :Required to answer.
i हम अपनी भाषा से दूर होते जा रहे हैं
ii कृत्रिम भाषा बोलते हैं
iii किसी को अपना नहीं मानते
3.ग) भाषा के अस्तित्व को कैसे बचाया जा सकता है ?Required to answer.
i कृत्रिम भाषा का प्रभाव कम करके
ii नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जोड़ कर
iii शब्दों को सुरक्षित कर के
4.घ) ' बखिया उधेड़ना ' मुहावरे का अर्थ है -Required to answer
i राज - रहस्य खोल देना
ii बुरा - भला कहना
iii अपना बखान करना
5.ड.) साफी का अर्थ है -Required to answer.
i बखिया
ii दामन
iii तौलिया
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