उत्तराखंड आपदा में स्वयं विधि घटनाओं का वर्णन करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए
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लोगों की बातों पर बहुत सहजता से भरोसा हो रहा था. सब कुछ सामने था. लोगों के चेहरे पर दुःख, कुछ खो देने का एहसास और सूनापन था.
लोगों के हाथ में बिछुड़ गए उनके अपनों की तस्वीरें थीं. जिनका अभी तक कोई पता नहीं है. जिनसे उनके परिवार के लोगों का संपर्क नहीं हो पा रहा है कि वे पहाड़ों में कहां खो गए?
अपने नौ दिन के अनुभव के बारे में यही कहूंगा, "मैंने कई बम धमाकों की ख़बरें लोगों तक पहुँचाईं, प्लेन क्रैश की ख़बरें भी लिखीं लेकिन इतनी बड़ी आपदा कभी नहीं देखी. मेरे अनुभव में यह हिंदुस्तान में सुनामी के बाद दूसरा सबसे. ...
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