Hindi, asked by ayushbhandarixb123, 6 months ago

उत्तराखंड और कर्नाटक के साहित्यकारों में साहित्यिक समानताएं
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Answered by nehabhosale454
23

Answer:

कन्नड साहित्य का इतिहास लगभग डेढ़ हजार वर्ष पुराना है।कुछ साहित्यिक कृतियाँ जो ९वीं शताब्दी में रची गयीं थीं, अब भी सुरक्षित हैं। कन्नड साहित्य को मुख्यतः तीन साहित्यिक कालों में बांटा जाता है- प्राचीन काल (450–1200 CE), मध्यकाल (1200–1700 CE) तथा आधुनिक काल (1700 से अब तक)। कन्नड साहित्य की एक विशेष बात यह है कि इसमें जैन, वीरशैव और वैष्णव तीनों सम्रदायों ने साहित्य रचना की जिससे मध्यकाल में तीन स्पष्ट धाराएँ दिखतीं हैं।यद्यपि १८वीं शताब्दी से पूर्व का अधिकांश साहित्य धार्मिक था, किन्तु कुछ असाम्प्रदायिक साहित्य भी रचा गया।

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उत्तराखंड का साहित्य विश्वभर में मान्य है। यहां के साहित्यकारों ने साहित्य को नई दिशा दी है। यह विचार मुख्यमंत्री हरीश रावत ने विकासखंड धारी के धानाचूली में आयोजित पांच दिवसीय कुमाऊं साहित्यकार उत्सव के शुभारंभ के दौरान कही। साथ ही बताया कि रविंद्र नाथ टैगोर, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा ने शांत और प्राकृतिक सौंदर्य के बीच ही साहित्य सृजन किया और जो साहित्य कुमाऊं की वादियों में सृजित हुआ वह बेजोड़ और बेमिसाल है और ऐसे सम्मेलन साहित्य को नई दिशा प्रदान करते हैं। देश-विदेश एवं उत्तराखंड के साहित्यकारों के बीच इस प्रकार के कार्यक्रमों से समागम होगा और साहित्य को नई दिशा मिलेगी। मुख्यमंत्री ने बताया कि वर्तमान में प्रदेश के साहित्यकारों, कवियों, लेखकों एवं फिल्मकारों को विशेष सुविधाएं दे रही है। इसके तहत प्रदेश की फिल्म नीति प्रचलित कर दी गई। साहित्यकार डॉ. शेखर पाठक ने कहा कि कुमाऊं, गढ़वाल का साहित्य काफी पुराना है। देवभूमि के साहित्य ने और कविता ने दुनिया में अमिट छाप छोड़ी है। देवभूमि में ईला जोशी, शिवानी, रमेश उप्रेती, गोविंदलामा, चारुचंद्र पांडे, तारा पांडे अनेक साहित्यकारों का सृजन किया है। 1918 में विनोद समाचार पत्र का प्रकाशन भी नैनीताल से हुआ था। कार्यक्रम को लेखिका जानवी प्रसाद, बरखा दत्त, विवेक ट्रेवरा, ऋषि सूरी, विवेक देवराय, डॉ. रकशानंद, विक्रम संपत, फहद, अनुज चौहान के अलावा पाकिस्तान से आई अमिना सैयद ने भी संबोधित किया। इस दौरान देश विदेश से आए अनेक लेखक, साहित्यकार भी उपस्थित थे।

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Answered by asajaysingh12890
63

कन्नड साहित्य का इतिहास लगभग डेढ़ हजार वर्ष पुराना है। कुछ साहित्यिक कृतियाँ जो ९वीं शताब्दी में रची गयीं थीं, अब भी सुरक्षित हैं। ... कन्नड साहित्य की एक विशेष बात यह है कि इसमें जैन, वीरशैव और वैष्णव तीनों सम्रदायों ने साहित्य रचना की जिससे मध्यकाल में तीन स्पष्ट धाराएँ दिखतीं हैं।

उत्तराखंड का भाषा साहित्य एवं क्षेत्रवार बोली जाने वाली लोकभाषाएँ हिंदी की एक पुरानी कहावत है, "कोस कोस पर बदले पानी चार कोस पर बाणी"। उत्तर प्रदेश से अलग हुए इस राज्य की राजकीय भाषा भी हिंदी है लेकिन अगर लोकभाषाओं की बात करें तो यहां एक या दो नहीं बल्कि 13 लोकभाषाएँ बोली जाती हैं।

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