उत्तर दीजिए ( लगभग 100-150 शब्दों में ) किन मायनों में सामाजिक अनुबंध की बौद्ध अवधारणा समाज के उस ब्राह्मणीय दृष्टिकोण से भिन्न थी जो ‘पुरुषसूक्त' पर आधारित था।
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निम्न मायनों में सामाजिक अनुबंध की बौद्ध अवधारणा समाज के उस ब्राह्मणीय दृष्टिकोण से भिन्न थी जो ‘पुरुषसूक्त' पर आधारित था -
ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में कहा गया है कि चार वर्णो का उदय आदि मानव पुरुष के बलिदान के कारण हुए। चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र थे। इन वर्णों के अलग-अलग काम थे। ब्राह्मणों का समाज में सबसे ऊंचा स्थान था। उन्हें शिक्षक भी माना जाता था। क्षत्रिय योद्धा माने जाते थे। वे प्रशासन भी चलाया करते थे। वैश्य व्यापार करते थे। शूद्र सबसे निचले तबके पर थे। उनका कर्तव्य उपरोक्त तीन वर्णों की सेवा करना था। इस ब्राह्मणवादी व्यवस्था के तहत, समाज में स्थिति और प्रतिष्ठा को आंकने के लिए जन्म ही एकमात्र मापदंड था।
लेकिन इस सामाजिक अनुबंध का बौद्ध सिद्धांत अलग था। बौद्ध अवधारणा के अनुसार, समाज में असमानता थी। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि यह असमानता न तो स्वाभाविक थी और न ही स्थायी। वे जन्म के आधार पर सामाजिक हैसियत का मापदंड नहीं मानते थे।
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Explanation:
ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में कहा गया है। चार वर्णों का उदय दी मानव पुरुष के बलिदान के कारण हुए। चार वर्ण र्ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शुद्र थे। इन वर्णों के अलग-अलग काम थे। ब्राह्मणों के समाज में सबसे ऊंचा स्थान था। उन्हें शिक्षक भी माना जाता था। क्षत्रिय योद्धा माने जाते थे। वे प्रशासन भी चलाया करते थे। वैस्य व्यापार थे शुद्र सबसे नीचे तबके पर थे। उनका कर्तव्य उपरोक्त तीन वर्णों की सेवा करना था। इस ब्राह्मणवादी व्यवस्था के तहत , समाज में स्थिति और प्रतिष्ठा को मापने के लिए जन्म ही एकमात्र मापदंड है।
लेकिन इस सामाजिक अनुबंध का बौद्ध सिद्धांत अलग था। बाध्द अवधारणाओं के अनुसार , समाज मे असमानता थी। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि यह असमानता ना तो स्वाभाविक थीऔर ना ही स्थाई |