History, asked by maahira17, 10 months ago

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में) चर्चा कीजिए कि अलवार, नवनार और वीरशैवों ने किस प्रकार जाति प्रथा को आलोचना प्रस्तुत की?

Answers

Answered by nikitasingh79
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अलवार, नयनार और वीरशैवों ने निम्न प्रकार जाति प्रथा को आलोचना प्रस्तुत की -  

प्रारंभ में भक्ति आंदोलन अलवार तथा नयनार के नेतृत्व में हुआ।  इसके विकास के क्रम में ही बारहवीं शताब्दी में कर्नाटक में बासवन्ना के नेतृत्व में वीरशैव संप्रदाय की उत्पत्ति हुई। अलवार और नयनार संत विभिन्न समुदायों या जाति से संबंधित थे;  जैसे - कोई ब्राह्मण जाति से था, तो कोई शिल्पकार, किसान और अन्य जातियों से , तो कुछ अस्पृश्य जातियों से भी थे, परंतु ये सारे संत एक समान पूजनीय थे। इनमें जाति को लेकर कोई परस्पर विरोधाभास नहीं था । इन्होंने अपने ग्रंथ 'नलयिरादिव्यप्रबन्धम्' को वेदों के समान बताया है। इन सब बातों से ऐसा प्रतीत होता है कि ये ब्राह्मण द्वारा पोषित जाति प्रथा के विरुद्ध थे और समानता के समर्थक थे।

वीरशैवों ने भी जाति की अवधारणाओं को अस्वीकार किया। कोई व्यक्ति या जाति दूषित भी हो सकती है। यह मानने से इन्होंने मना कर दिया, जिसके कारण 'अस्पृश्य' जातियां वीरशैव संप्रदाय को अपनाने लगी। इसके अतिरिक्त इन्होंने  वयस्क विवाह तथा विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया और ब्राह्मण पोषित विरोधी विचारधाराओं का खंडन किया।

आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।

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Answered by Anonymous
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Explanation:

उत्तर: अलवार और नयनार संतों ने जाति प्रथा व ब्राह्मणों की प्रभुता के विरोध में आवाज़ उठाई।

  • इन संतों में कुछ तो ब्राह्मण, शिल्पकार और किसान थे और कुछ उन जातियों से आए थे जिन्हें अस्पृश्य' माना जाता था।

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