Hindi, asked by ashsheikh17373, 1 month ago

उदाहरणानुसारं समासं / समासविग्रहं वा कुरुत - (उदाहरण के अनुसार समास/समासविर
म्
समासः
समासविग्रहः

(i) पञ्चवटी​

Answers

Answered by Ruchita44
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Answer:

समासस्य परिभाषा- संमसनं समासः अथवा अनेकपदानाम् एकपदीभवनं समासः अर्थात् यदा अनेकपदानि मिलित्वा एकपदं जायन्ते तदा सः समासः इति कथ्यते । यथा- सीतायाः पति = सीतापतिः। अत्र सीतायाः पतिः इति पदद्वयं मिलित्वा एकपदं (सीतापति:) जातम् अत: अयमेव समासः अस्ति। (संक्षिप्तीकरण समास है अथवा अनेक पदों का एक पद होना समास है। अर्थात् जब अनेक पद मिलकर एक पद निर्मित करते (बनाते हैं, तब वह समास कहा जाता है। जैसे- सीतायाः पतिः (सीता का पति)= सीतापतिः। यहाँ “सीतायाः पतिः” ये दो पद मिलकर एक पद (सीतापति:) बना। अत: यह ही समास है।)

समासे जाते अर्थे किमपि परिवर्तनं न भवति। योऽर्थः ‘सीतायाः पतिः’ इत्सस्य विग्रहवाक्यस्य अस्ति सः एव अर्थ: ‘सीतापतिः’ इत्यस्य समस्तशब्दस्य अस्ति। (समास बनने पर अर्थ में कोई भी परिवर्तन नहीं होता है जो अर्थ ‘सीतायाः पतिः इस विग्रहवाक्य का है वह ही अर्थ ‘सीतापतिः’ इस समस्त शब्द का है।)

पूर्वोत्तरविभक्तिलोपः – सीतायाः पतिः = सीतापतिः। अस्मिन् विग्रहे सीतायाः इत्यत्र षष्ठीविभक्तिः, पतिः इत्यत्र प्रथमाविभक्तिश्च श्रूयेते। समासे कृते अनयोः द्वयोरपि विभक्तयोः लोपो भवति । तत्पश्चात् ‘सीतापति’ इति समस्तशब्दात् पुनरपि प्रथमाविभक्तिः क्रियते इत्येव सर्वत्र अवगन्तव्यम्। (सीतायाः पतिः = सीतापतिः। इस विग्रह में सीतायाः’ इसमें षष्ठी विभक्ति है, ‘पतिः’ इसमें प्रथमाविभक्ति सुनाई देती है। समास करने पर इन दोनों विभक्तियों का लोप होता है। तत्पश्चात् ‘सीतापति’ इस समस्त शब्द से पुन: प्रथमा विभक्ति की जाती है जिसे सभी जगह अर्थात् सम्पूर्ण समस्त ब्द में जानना चाहिए।)

समासयुक्तः शब्दः समस्तपदं कथ्यते । यथा- ‘सीतापतिः’ इति समस्तपदम्। समस्तशब्दस्य अर्थं बोधयितुं यद् वाक्यम् । उच्यते तद्वाक्यं विग्रहः इति कथ्यते । यथा सीतायाः पतिः इति वाक्यं विग्रहः अस्ति। (समासयुक्त शब्द समस्त पद कहा जाता है। जैसे ‘सीतापतिः’ यह समस्तपद है। समस्त शब्द का अर्थ जानने के लिा जो वाक्य बोला जाता है वह वाक्य ‘विग्रह’ कहा जाता है। जैसे- ‘सीतायाः पतिः’ यह वाक्य विग्रह है।)

समासस्यभेदाः – संस्कृतभाषायां समासस्य मुख्यरूपेण चत्वारः भेग: सन्ति । समासे प्रायशः द्वे पदे भवतः- पूर्वपदम् उत्तरपदम् व। पदस्य अर्थः पदार्थ: भवति । यस्य पदार्थस्य प्रधानता भवति तदनुरूपेण एव समासस्य संज्ञा अपि भवति । यथा प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधान: अव्ययीभावः भवति । प्रायेण उत्तरपदार्थप्रधान: तत्पुरुषः भवति। तत्पुरुषस्य भेद: कर्मधारयः भवति। कर्मधारस्य भेद द्विगु भवति। प्रायेण अन्यपदार्थप्रधान बहुव्रीहिः भवति । प्रायेण उभयपदार्थप्रधान: द्वन्द्वः भवति । एवं समासस्य सामान्यरूपेण षड्भेदाः भवन्ति। (संस्कृतभाषा में समास के मुख्य रूप से चार भेद हैं। समास में प्राय: दो पद होते हैंपूर्वपद और उत्तरपद। पद का अर्थ पदार्थ होता है। जिस पदार्थ की प्रधानता होती है उसी के अनुसार ही समास की संज्ञा (नाम) भी होती है। जैसे प्रायः पूर्व पदार्थ प्रधान ‘अव्ययीभाव’ होता है। प्रायः उत्तर पदार्थ प्रधान ‘तत्पुरुष’ होता है। तत्पुरुष का भेद कर्मधारय होता है। कर्मधारय का भेद द्विगु’ होता है। प्रायः अन्य पदार्थ प्रधान ‘बहुव्रीहि’ होता है। प्राय: उभयपदार्थ प्रधान ‘द्वन्द्व होता है। इस प्रकार सामान्य रूप से समास के छः भेद होते हैं।)

1. अव्ययीभावसमासः

यदा विभक्ति, समीप इत्यादिषु अर्थेषु वर्तमानम् अव्ययपदं सुबन्तेन सह नित्यं समस्यते तदा असौ अव्ययीभावसमासो भवति । अथवा इदमत्र अवगन्तव्यम्- (जब विभक्ति, समीप-इत्यादि अर्थों में वर्तमान अव्यय पद सुबन्त के साथ नित्य समास होता है तब यह अव्ययीभाव समास होता है। अथवा इसको इस प्रकार जानना चाहिए-)

अस्य समासस्य प्रथमशब्दः अव्ययं द्वितीयश्च संज्ञाशब्दो भवति। (इस समास का प्रथम शब्द अव्यय और द्वितीय संज्ञा शब्द होता है।)

अव्ययशब्दार्थस्य अर्थात् पूर्वपदार्थस्य प्रधानता भवति । (अव्यय शब्द के अर्थ की अर्थात् पूर्व पदार्थ की प्रधानता होती है।)

समासस्य पदद्वयं मिलित्वा अव्ययं भवति । (समास के दो पद मिलकर अव्यय होता है।)

अव्ययीभावसमासः नपुंसकलिङ्गस्य एकवचन भवति । यथा- (अव्ययीभाव समास नपुंसकलिङ्ग के एकवचन में होता है।)

ध्यातव्यम्- (अ) ”यथा विभक्ति, समीप-इत्यादिषु” से तात्पर्य है

1. विभक्ति, 2. समीप, 3. समृद्धि, 4. समृद्धि का नाश 5. अभाव 6. नाश 7. अनुचित 8. शब्द की अभिव्यक्ति 9. पश्चात् 10. यथा 11. क्रमशः 12. एकदम 13. समानता 14. सम्पत्ति 15. सम्पूर्णता 16. अन्त तक। इन सोलह में वर्तमान अव्यय का सुबन्त के साथ नित्य समास होता है।

(ब) नित्यसमास- प्रायः जिस समास का विग्रह न हो उसे ‘नित्यसमास’ कहते हैं। अथवा प्रायः जिसका अपने पदों से विग्रह नहीं होता अर्थात् जिन शब्दों का समास हुआ हो उन शब्दों के द्वारा जिसका विग्रह न हो, वह नित्यसमास’ होता है।

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