उदाहरण सहित मुगल इतिहास के विशिष्ट अभी लक्षणों की चर्चा करें
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उत्तर:
मुग़ल सम्राटों की प्रांतीय शासन व्यवस्था का स्वरूप केंद्रीय शासन व्यवस्था के स्वरूप के समान ही था। प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से साम्राज्य का विभाजन प्रांतों अथवा सूबों में कर दिया गया था।
मुगलकाल में विभिन्न सम्राटों के शासनकाल में प्रांतों की संख्या भिन्न-भिन्न रही। अकबर के शासनकाल में प्रांतों की संख्या पंद्रह थी; जहाँगीर के शासनकाल में सत्रह और शाहजहाँ के शासनकाल में यह संख्या बाईस तक पहुँच गई थी। औरंगजेब के शासनकाल में साम्राज्य में इक्कीस प्रांत थे।
प्रांतीय शासन व्यवस्था के प्रमुख अभिलक्षण इस प्रकार थे
(1) सूबेदार-
सूबेदार प्रांत का सर्वोच्च अधिकारी था, जिसे साहिब-ए-सूबा, नाज़िम, सिपहसालार आदि नामों से भी जाना जाता था।
सूबेदार की नियुक्ति स्वयं सम्राट के द्वारा की जाती थी और वह सम्राट के प्रति ही उत्तरदायी होता था। सूबे के सभी अधिकारी उसके अधीन होते थे।
(2) दीवान :
-दीवान प्रांत का प्रमुख वित्तीय अधिकारी था। इसकी नियुक्ति सम्राट द्वारा केंद्रीय दीवान के परामर्श से की जाती थी। प्रांतीय दीवान सूबेदार के अधीन नहीं अपितु केंद्रीय दीवान के अधीन होता था।
प्रांतीय खजाने की देखभाल करना, प्रांत की आय-व्यय का हिसाब रखना, दीवानी मुकद्दमों का फैसला करना, प्रांतीय आर्थिक स्थिति के संबंध में केंद्रीय दीवान को सूचना देना तथा राजस्व विभाग के कर्मचारियों के कार्यों की देखभाल करना आदि दीवान के महत्त्वपूर्ण कार्य थे।
(3) बख्शी :
बख्शी प्रांतीय सैन्य विभाग का प्रमुख अधिकारी था। प्रांत में सैनिकों की भर्ती करना तथा उनमें अनुशासन बनाए | रखना उसके प्रमुख कार्य थे।
(4) वाक्रिया-
नवीस-वाक़िया-नवीस प्रांत के गुप्तचर विभाग का प्रधान था। वह प्रांतीय प्रशासन की प्रत्येक सूचना केंद्रीय सरकार को भेजता था।
(5) कोतवाल-
प्रांत की राजधानी तथा महत्त्वपूर्ण नगरों की आंतरिक सुरक्षा, शांति एवं सुव्यवस्था तथा स्वास्थ्य और सफाई का प्रबंध कोतवाल द्वारा किया जाता था।
(6) सदर और काज़ी-प्रांत में सदर और काज़ी का पद सामान्यतः
एक ही व्यक्ति को दिया जाता था। सदर के रूप में वह प्रजा के नैतिक चरित्र की देखभाल करता था और काज़ी के रूप में वह प्रांत का मुख्य न्यायाधीश था।
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