उदाहरण सहित वाणिज्यिक खेती और और निर्वाह खेती में अंतर स्पष्ट करें।
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निर्वाह कृषि:
निर्वाह कृषि:जिस प्रकार की खेती से केवल इतनी उपज होती हो कि उससे परिवार का पेट भर सके तो उसे प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि कहते हैं। इस प्रकार की खेती जमीन के छोटे टुकड़ों पर की जाती है। इसमें आदिम औजार और परिवार या समुदाय के श्रम का इस्तेमाल होता है। यह मुख्यतया मानसून पर और जमीन की प्राकृतिक उर्वरता पर निर्भर करती है। इस प्रकार की कृषि में किसी स्थान विशेष की जलवायु के हिसाब से ही किसी फसल का चुनाव किया जाता है।
निर्वाह कृषि:जिस प्रकार की खेती से केवल इतनी उपज होती हो कि उससे परिवार का पेट भर सके तो उसे प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि कहते हैं। इस प्रकार की खेती जमीन के छोटे टुकड़ों पर की जाती है। इसमें आदिम औजार और परिवार या समुदाय के श्रम का इस्तेमाल होता है। यह मुख्यतया मानसून पर और जमीन की प्राकृतिक उर्वरता पर निर्भर करती है। इस प्रकार की कृषि में किसी स्थान विशेष की जलवायु के हिसाब से ही किसी फसल का चुनाव किया जाता है।इसे ‘कर्तन दहन खेती’ भी कहा जाता है। ऐसा करने के लिये सबसे पहले जमीन के किसी टुकड़े की वनस्पति को काटा जाता और फिर उसे जला दिया जाता है। वनस्पति के जलाने से राख बनती है उसे मिट्टी में मिला दिया जाता है। उसके बाद फसल उगाई जाती है।
निर्वाह कृषि:जिस प्रकार की खेती से केवल इतनी उपज होती हो कि उससे परिवार का पेट भर सके तो उसे प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि कहते हैं। इस प्रकार की खेती जमीन के छोटे टुकड़ों पर की जाती है। इसमें आदिम औजार और परिवार या समुदाय के श्रम का इस्तेमाल होता है। यह मुख्यतया मानसून पर और जमीन की प्राकृतिक उर्वरता पर निर्भर करती है। इस प्रकार की कृषि में किसी स्थान विशेष की जलवायु के हिसाब से ही किसी फसल का चुनाव किया जाता है।इसे ‘कर्तन दहन खेती’ भी कहा जाता है। ऐसा करने के लिये सबसे पहले जमीन के किसी टुकड़े की वनस्पति को काटा जाता और फिर उसे जला दिया जाता है। वनस्पति के जलाने से राख बनती है उसे मिट्टी में मिला दिया जाता है। उसके बाद फसल उगाई जाती है।किसी जमीन के टुकड़े पर दो चार बार खेती करने के बाद उसे परती छोड़ दिया जाता है। उसके बाद एक नई जमीन को खेती के लिये तैयार किया जाता है। इस बीच पहले वाली जमीन को इतना समय मिल जाता है कि प्राकृतिक तरीके से उसकी खोई हुई उर्वरता वापस हो जाती है।
वाणिज्यिक कृषि:
वाणिज्यिक कृषि:जब खेती का मुख्य उद्देश्य पैदावार की बिक्री करना हो तो उसे वाणिज्यिक कृषि कहते हैं। इस प्रकार की कृषि में आधुनिक साजो सामान का इस्तेमाल होता है। इसमें अधिक पैदावार वाले बीज, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक और खरपतवारनाशक का इस्तेमाल होता है। भारत में पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ भागों में बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक कृषि होती है। इसके अलावा बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिल नाडु, आदि में भी इस प्रकार की खेती होती है।
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