उठो लाल अब आँखें खोलो,
पानी लाई हूँ मुँह धो लो।
बीती रात कमल दल फूल,
उनके ऊपर भँवरे झूले।
चिड़ियाँ चहक उठीं पेड़ों पर,
बहने लगी हवा अति सुंदर।
भोर हुई सूरज उग आया.
जल में पड़ी सुनहरा छाया।
नन्ही-नन्ही किरणें आई,
फूल खिले कलियाँ मुसकाई।
इतना सुदर समय न खोआ,
मेरे प्यारे अब मत सोओ |
कविता का शीर्षक
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sohanlal trivedi is the poet of this poem.
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उठो लाल अब आँखें खोलो,
पानी लाई हूँ मुँह धो लो।
बीती रात कमल दल फूल,
उनके ऊपर भँवरे झूले।
चिड़ियाँ चहक उठीं पेड़ों पर,
बहने लगी हवा अति सुंदर।
भोर हुई सूरज उग आया.
जल में पड़ी सुनहरा छाया।
नन्ही-नन्ही किरणें आई,
फूल खिले कलियाँ मुसकाई।
इतना सुदर समय न खोआ,
मेरे प्यारे अब मत सोओ |
कविता का शीर्षक होगा
" नन्हा बालक "
- इस कविता के कवि सोहनलाल द्विवेदी हैं।
- कविता में मां अपने नन्हे बालक को सुबह नींद से जगा रही है, वह कह रही है कि मेरे लाल उठो, आंखे तो खोलो, पानी लाई हूं, अपना मुंह तो धो लो।
- मां कह रही है कि सुबह हो गई है, सूरज निकल आया है।
- पेड़ों पर चिड़ियां चहक रही है, मंद मंद हवा चल रही है। पानी पर सूर्य की किरणें पड़कर उसे सुनहरा बना रही हैं।
- फूलों पर भंवरे मंडरा रहे है, फूल खिले है तथा कालिया मुस्कुरा रही हैं।
- मां कविता की अंतिम पंक्तियों में कह रही है अब उठ जाओ, अपना समय व्यर्थ न गंवाओ।
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