उदारीकरण में प्रतिबंधों को दूर करने के लिए अर्थव्यवस्था में कौन सी नीति अपनाई गई
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उदारीकरण का अभिप्राय अर्थव्यवस्था पर प्रशासनिक नियन्त्रण को धीरे-धीरे शिथिल करते हुए अन्तत: उन्हें समाप्त कर देने से है। यह आर्थिक कार्यकरण में सरकारी हस्तक्षेप का विरोध है। यह विरोध मूलतः दो मान्यताओं पर आधारित है—प्रथम, सरकारी हस्तक्षेप प्रतियोगिता को कुंठित करता है, कुशलता को घटाता है और उत्पादन लागतों को बढ़ाता है, जिससे अर्थव्यवस्था अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता करने में शिथिल पड़ जाती है। दूसरे, सरकारी नियन्त्रणों के कारण संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग नहीं हो पाता, जिससे मात्रा एवं गुणवत्ता दोनों ही दृष्टियों से उत्पादन पिछड़ जाता है। भारत में यह प्रक्रिया औद्योगिक नीति सन् 1991 ई० से अपनाई जा रही है।
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1. लाइसेन्स अथवा पंजीकरण की समाप्ति- नई औद्योगिक नीति (1991) में सरकार ने नियन्त्रण के स्थान पर ‘उदारवादी नीति अपनाई। अब तक केवल 6 उद्योगों के लिए लाइसेन्स लेने की अनिवार्य व्यवस्था है, शेष उद्योगों के लिए लाइसेन्स लेना अनिवार्य नहीं है।
2. एकाधिकारी कानून से छूट- अब एम०आर०टी०पी० फर्म की अवधारणा को समाप्त कर दिया गया है। अब इन फर्मों को अपना विस्तार करने की स्वतन्त्रता मिल गई है। निर्धारित पूँजी निवेश सीमा भी समाप्त कर दी गई है।
3. विस्तार तथा उत्पादन की स्वतन्त्रता- उदारीकरण की नीति के अन्तर्गत अब उद्योगों को अपना विस्तार तथा उत्पादन करने की स्वतन्त्रता है। अब उत्पादक बाजार की माँग के आधार पर यह निर्णय भी ले सकते हैं कि उन्हें कौन-सी वस्तुओं का उत्पादन करना है।
4. लघु उद्योगों की निवेश सीमा में वृद्धि- लघु उद्योगों की निवेश सीमा को बढ़ाकर 5 करोड़ कर दिया गया है ताकि वे अपना आधुनिकीकरण कर सकें।
5. पूँजीगत पदार्थों के आयात की स्वतन्त्रता- उदारीकरण की नीति के फलस्वरूप भारतीय उद्योग | अपना विस्तार तथा आधुनिकीकरण करने के लिए विदेशों से मशीनें तथा कच्चा माल खरीदने के लिए स्वतन्त्र हैं।
6. तकनीकी आयात की छूट- आधुनिकीकरण के लिए उच्च तकनीक का प्रयोग आवश्यक है। भारतीय उद्योगों को नई तकनीकी उपलब्ध कराने के लिए अब उच्चतम प्राथमिकता वाले उद्योगों को तकनीकी समझौते करने के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।