उदारता व सत्कर्म पर निबंध(1000-1500 words)
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उदारता व सत्कर्म पर निबंध
उदारता व सत्कर्म जीवन के मार्ग है | मानव जीवन एक बार मिलता है | इसलिए हमें अपने जीवन में दया और सत्य (उदारता व सत्कर्म) के रास्ते पर चलना चाहिए | मानव धर्म में दया और सत्य ही धर्म से बड़ा धर्म है| सब के साथ प्यार भावना के साथ रहना ही मानव धर्म में आता है | भगवान से हमें मानव जन्म अच्छे कर्म करने के लिए दिया है |
सत्कर्म के मार्ग पर चलने से जीवन बहुत अच्छे से व्यतीत होता है | सत्य के रास्ते पर चलने वाले व्यक्ति की हमेशा जीत होती है और उसे समय के साथ सफलता भी मिलती है | दया का असल मतलब है किसी की दिल से मदद करना जिसको मदद की जरूरत है | किसी से गलती हो जाए तो उसे गलती का एहसास दिला कर उसे माफ कर देना और आगे बढ़ने की प्रेरणा देना |
दया का असल मतलब है किसी की दिल से मदद करना जिसको मदद की जरूरत है| किसी से गलती हो जाए तो उसे गलती का एहसास दिला कर उसे माफ कर देना और आगे बढ़ने की प्रेरणा देना होता है|
उदारता एक दैवीय गुण है :-
उदारता का यह श्रेष्ठ उदाहरण है। इससे बड़ा उदाहरण परिवार में ही मिल सकता है। मां का सन्तान के प्रति उदारता का भाव। किसी परिस्थिति में नहीं बदलता। यहां तक कि जिन जातियों में बूढ़ी मां को बेचने की प्रथा है, वहां भी नहीं बदलता। इसी प्रकार शिष्य के प्रति गुरू की उदारता कभी घटती नहीं। वात्सल्य यहां उदारता का पर्याय बनता है। सन्तान की माता-पिता के प्रति उदारता भी प्रकृति का अद्भुत उदाहरण है। माता-पिता से बात-बात में डांट खाते रहने के बाद भी उनकी हर गलती को क्षमा कर देना अद्भुत नहीं है क्या? प्रकृति में सामाजिक सम्बन्ध नहीं होते। नर-मादा-नपुंसक होते हैं। अपने-अपने कर्म भोगकर चले जाते हैं। उदारता में विस्तार अग्नि का ही धर्म है। संकोच सोम का धर्म है
दया एक पुण्य है जो शायद ही इन दिनों कभी देखी जाती है :-
लोग इन दिनों अपने आप में इतने व्यस्त हैं कि वे अपनी जरूरतों और इच्छाओं को पूरी करते हैं और दूसरों की प्राय: अनदेखी करते हैं। दूसरों के प्रति दयालु होना बड़ा मुश्किल सवाल बन गया है। दया दूसरों की ओर विनम्र और विचारशील होने का गुण है। यह एक ऐसा गुण है जो हर किसी के पास नहीं है। इस दुनिया में बहुत कम लोगों को ऐसे गुण से नवाज़ा गया है और उनकी उपस्थिति उनके चारों ओर के लोगों के लिए एक वरदान है।
उदारता का मूल है देना :-
चाहे सामने वाले को अपनी बात कहने का अवसर ही हो। उदारवाद का अर्थ है सामने वाले को अघिक महžव देना। अहंकार मुक्त होकर देना। कर्ता भाव छोड़कर देना। सामने वाले के शरीर को नहीं, उसके आत्मा को देना। ताकि आपके अतिरिक्त किसी को पता भी न चल सके। वापिस नहीं मांगने के भाव से, सामने वाले का शुभचिन्तक बनकर देना। अपेक्षा भाव उदारवादी कर्मो में विष घोल देता है। जीवन को व्यापार बना देता है। दूसरों के प्रति दया दिखाने का मतलब जरूरी नहीं है कि उनके लिए कुछ बड़ा करना। यह विनम्र होने और या किसी को भावनात्मक समर्थन देने के रूप में छोटे से योगदान के रूप में कुछ भी हो सकता है। यह कुछ भी हो सकता है जैसे उस बूढ़ी औरत को मुस्कुराहट देना जो अपनी बालकनी में अकेले बैठकर लोगों को आता जाता देखती है या किसी चिड़िया को रोटी का छोटा सा टुकड़ा देना जो आपकी छत पर हर दिन आकर चहचहाट करती है।
सत्कर्म :-
मनुष्य जैसा कर्म करता है वैसा ही फल भोगता है। मनुष्य के द्वारा किया गया कर्म ही प्रारब्ध बनता है। इसे यूं समझें कि किसान जो बीज खेत में बोता है, उसे ही फसल के रूप में वह बाद में काटता है। भगवान श्रीकृष्ण गीता में स्वयं कहते हैं कि कोई भी मनुष्य क्षण भर भी कर्म किए बगैर नहीं रह सकता है। आज के समय में विचार किए जाने की आवश्यकता यह है कि क्या हम शत-प्रतिक्षण, दिन-प्रतिदिन जो कर्म कर रहे हैं, वह हमें जीवन में ऊंचाई की तरफ ले जा रहे हैं या फिर इस संदर्भ में कहीं लापरवाही हमें नीचे तो नहीं गिरा रही है ? हम सत्कर्मों के सहारे स्वर्ग में जा सकते हैं और बुरे के द्वारा नरक में। मानव के पास ही प्रभु ने शक्ति प्रदान की है कि अपने सत्कर्मों के सहारे वह जीवन नैया को पार लगा सके।