उदारवाद का उदय किन कारणों से हुआ?
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प्राचीन और मध्य युग में मनुष्य का आर्थिक,समाजिक और राजनीतिक जीवन बहुत ही चिंताजनक थी। व्यक्ति को शासको के द्वारा की जाने वाली अत्याचारो से त्रस्त थे। उस समय व्यक्ति धार्मिक अंधविश्वास के साथ समाजिक कुरीतियों में भी फंसे हुए थे। ये वो दौर था जिसमें व्यक्ति गुलाम बने हुए थे या यो कहे की गुलाम की तरह जीवन गुजर बसर हो रहा था। उत्पादनों के सभी साधनों पर सामन्तों का स्वामित्व था। खेतों पर सामन्तों का स्वामित्व था, किंतु कृषि कार्य किसान करते थे जिनकी स्थिति दासो के सामान थी। कारीगर, व्यापारी, स्वतंत्र नही थे। आम जनता गरीबी में बसर कर रहे थे। पेसा का आधार वंस-परम्परा थी। धार्मिक संस्थाये भी आर्थिक समाजिक जीवन में हस्तक्षेप करती थी
इस तरह कह सकते हैं की मध्य काल में व्यक्ति को किसी भी प्रकार की स्वतन्त्रता नही थी न उसका कोई मूल्य था। वह जीवन के हर क्षेत्र में बंधनो से बंधा हुआ था।
15वीं और 16वीं सदी में दो महान् आन्दोलन चले- (1) पुनर्जागरण(Renaissance) और धर्म-सुधार(Reformation) का।
इन आंदोलनों से महत्वपूर्ण परिवर्तन होना शुरू हुआ।
नवजागरण के समय को मानव के गौरव (dignity of man) पर बल दिया गया। और कहा गया की व्यक्ति स्वयं अपने भाग्य का निर्माता है, उसे स्वतन्त्र छोड़ दिया जाये ताकि वह अपने कार्य को किसी दर से नही, बल्कि तर्क और विवेक-बुद्धि से करे। उस समय प्रचलित पारलौकिक दृष्टीकोण के स्थान पर व्यक्ति के सम्बंध में लौकिक दृष्टीकोण को अपनाया गया। श्रद्धा और अंधविश्वास का स्थान बुद्धि ने लिया। इस तरह बौद्धिक आंदोलन की शुरुआत हुई, जिसने लोगों के विचारों, आदर्शों और चिंतन पध्दतियों में क्रांतिकारी बदलाव हुए। छापखाने के आविष्कार के कारण इटली, पौलेंड, स्पेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशो में इस आन्दोलन के अंतर्गत मानवीय तत्वों और वैज्ञानिक विचारों का प्रसार हुआ।
धार्मिक क्षेत्र में पोप की निरंकुशता के विरोध में आवाजें उठी और धर्म-सुधार आन्दोलन की शुरुआत हुई। मार्टिन लूथर, ज्विन्गली तथा कैल्विन आदि धर्म-सुधारकों के द्वारा धार्मिक निरंकुशता का विरोध किया गया। पोपवाद की जड़े हिल गयीऔर धार्मिक संस्थाओं से लोगों का भरोसा उठ गया। फिर धर्म-सुधार ने धार्मिक जीवन की बुराई को समाप्त कर व्यक्तियों को वास्तविक अर्थ में स्वतन्त्रता प्रदान की।
Pro. Laski के अनुसार "धर्म-सुधार के सिद्धान्त तथा सामाजिक परिणाम व्यक्त के लिए मुक्तिदायक सिद्ध हुए।"
इन दो महान् आन्दोलन में उदारवादी विचारधारा का जन्म हुआ। उसके कारण ये विचार सर्वमान्य हो गए की व्यक्ति अपने जीवन को विकसित करने के लिए जो रास्ता ठीक लगे, उसे अपनाये, जो धर्म उसे अच्छा लगे उसे माने और जिस धर्म को चाहे उसका पालन करें।
भाषण, विचार अभिव्यक्ति और धर्म की स्वतन्त्रता इन आंदोलनों की मुख्य देने हैं।
उदारवाद ने इसे आधार रूप से अपनाया।