India Languages, asked by Rafikulhoque, 1 year ago

उद्देश्य की शिक्षा के प्रकार​

Answers

Answered by bhardwajsaksham
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Answer:

(1) जीवन दर्शन

(2) राजनितिक प्रगति

(3) प्रौधोगिक उन्नति

(4) सामाजिक तथा आर्थिक दशायें

(1) जीवन दर्शन – शिक्षा का तात्पर्य जीवन के लक्ष्य को प्रभावित करना है। इसके लिए वह जीवन दर्शन से प्रभावित होती है। चूँकि उदेश्य का सम्बन्ध शिक्षा से है, इसलिए शिक्षा के उदेश्य भी किसी न किसी रूप में जीवन दर्शन से ही प्रभावित होते हैं तथा होते रहेंगे। यही कारण है कि जिस व्यक्ति का जीवन दर्शन आध्यात्मिक रूप से उन्नत रहा है उसने शिक्षा के चरित्रगठन तथा नैतिक उदेश्य पर बल दिया है। इसके विपरीत जिस व्यक्ति का जीवन दर्शन बाह्य जगत की पूर्णता रहा है उसने शिक्षा का उदेश्य जीवन को सुखी बनाना माना है। उदाहरण के रूप में हरबार्ट आदर्शवादी दर्शन का अनुयायी था। अत: उसके अनुसार शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य है – नैतिकता। इसी प्रकार प्रकृतिवादी दार्शनिक हरबर्ट स्पेंसर का जीवन दर्शन बाह्य जगत की पूर्णता रहा है। अत: उसने बताया की शिक्षा का उदेश्य पूर्ण जीवन की तैयारी है। इस प्रकार हम देखते हैं कि शिक्षा के उदेश्य जीवन दर्शन से परभावित होते हैं।

(2) राजनितिक प्रगति – जे० एफ़० ब्राउन के अनुसार किसी भी देश की तथा किसी भी युग की शिक्षा शासक-वर्ग की विशेषताओं को व्यक्त करती है। इसका प्रमाण यह है कि जनतांत्रिक, स्वेच्छाचारी, फासिस्ट तथा साम्यवादी आदि सभी प्रकार की सकारों ने शिक्षा के उदेश्यों का निर्माण अपने-अपने अलग-अलग लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सदैव अलग-अलग ढंगों से किया है। जिन देशों में जनतंत्र का बोलबाला है वहाँ पर “ उतम नागरिक बनना “ ही शिक्षा का मुख्य उदेश्य होता है। अमरीका, इंग्लैंड तथा भारत आदि जनतांत्रिक देशों के उदाहरण इस सम्बन्ध में दिये जा सकते हैं। इसके विपरीत स्वेच्छाचारी राज्यों में चाहे वे राजतन्त्र हों अथवा तानाशाही, शिक्षा का उदेश्य “ शासकों के प्रति अपार श्रध्दा तथा उनकी आज्ञा का पालन करना “ हो होता है।

(3) प्रौधोगिकी उन्नति – आज के वैज्ञानिक युग में प्रौधोगिक उन्नति पर बल दिया जाता है। अमरीका, रूस, इंग्लैंड तथा जापान आदि देशों को केवल प्रौधोगिक उन्नति की दृष्टि से ही प्रगतिशील प्रशिक्षण को शिक्षा का महत्वपूर्ण उदेश्य माना है। जो देश प्रौधोगिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं वहां की शिक्षा का उदेश्य भी विज्ञान तथा प्रौधोगिक की शिक्षा देना हो सकता है। यही कारण है कि भारत में भी अब तकनीकी प्रशिक्षण के लिए विस्तृत सुविधायें दी जा रही है।

(4) सामाजिक तथा आर्थिक दशायें- शिक्षा के उदेश्यों के निर्माण में किसी देश की सामाजिक तथा आर्थिक दशाओं का भी गहरा हाथ होता है। जिन देशों की सामाजिक तथा आर्थिक दशायें सोचनीय होती है उन देशों विकसित करने के लिए “ कर्मठ नागरिकों का निर्माण करना तथा उनकी व्यवसायिक कुशलता में उन्नति करना “। आदि शिक्षा के उदेश्यों का निर्माण किया जाता है। हमारे देश में भी जब छात्रों को इस प्रकार का चारित्रिक प्रशिक्षण दिया जाता है कि वे नागरिक के रूप में देश की जनतांत्रिक तथा सामाजिक व्यवस्था में रचनात्मक ढंग से भाग लेते हुए अपनी व्यवहारिक एवं व्यवसायिक कुशलता में उन्नति कर सकें जिससे भारत सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टि से दिन-प्रतिदिन उन्नतिशील होता रहे।

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