Hindi, asked by theramworld50, 8 months ago

उद्धौ मनमोहन न आवे निठुर भए सरसावे म्वाॅ जोग भोग कुब्जा खॉ जा नई राय चलाले जबसे गए खबर ना भेजी नहीं संदेस पठावें आपुन जाय द्वारका छाए कुब्जा कंठ न लगावे​

Answers

Answered by adityarajverma682
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Explanation:

गोपियां कहती है, `मन तो हमारा एक ही है, दस-बीस मन तो हैं नहीं कि एक को किसी के लगा दें और दूसरे को किसी और में। अब वह भी नहीं है, कृष्ण के साथ अब वह भी चला गया। तुम्हारे निर्गुण ब्रह्म की उपासना अब किस मन से करें ?" `स्वासा....बरीस,' गोपियां कहती हैं,"यों तो हम बिना सिर की-सी हो गई हैं, हम कृष्ण वियोगिनी हैं, तो भी श्याम-मिलन की आशा में इस सिर-विहीन शरीर में हम अपने प्राणों को करोड़ों वर्ष रख सकती हैं।" `सकल जोग के ईस' क्या कहना, तुम तो योगियों में भी शिरोमणि हो। यह व्यंग्य है।

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