उठो धरा के अमर सपूतो
पुनः नया निर्माण करो।
जन-जन के जीवन में फिर से
नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो।
नया प्रात है, नई बात है,
नई किरण है, ज्योति नई।
नई उमंगें, नई तरंगे,
नई आस है, साँस नई।
युग-युग के मुरझे सुमनों में,
नई-नई मुसकान भरो।
ka bhavarth karo
Answers
कविता :- उठो धरा के अमर सपूतो
कवि :- द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
उठो धरा के अमर सपूतो
पुनः नया निर्माण करो।
जन-जन के जीवन में फिर से
नई स्फूर्ति, नव प्राण भरो।
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि, धरती के अमर सपूत
अर्थात् युवाओं को उठने एवं जागने को कह
रहे है । साथ ही धरती का पुनः निर्माण करने
का संदेश भी दे रहे हैं ।
नया प्रात है, नई बात है,
नई किरण है, ज्योति नई।
नया सवेरा है , उसके साथ ही नया विषय भी ।
नए सवेरे के साथ नयी सूर्य की किरण भी है ।
और साथ ही सूर्य का तेज़ भी नया है । अतः
प्रस्तुत पंक्तियों में सब कुछ नया है , यह बात
बताया जा रहा है ।
नई उमंगें, नई तरंगे,
नई आस है, साँस नई।
युग-युग के मुरझे सुमनों में,
नई-नई मुसकान भरो।
कवि कह रहा है कि नई उमंग के साथ जो
निराश हुए व्यक्ति है उनकी निराशा को दूर
करो । उनमें उमंग भरो, उनके चेहरे पर
मुस्कान लाओ ।
निष्कर्ष: कवि कहना चाह रहा है कि यह नया
दिन है , नए दिन के साथ कई चुनौती भी है ,
लोग निराशा से भरपूर है । लोगो के निराशाओं
को दूर कर उनके चेहरे में मुस्कान भरो ।
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