उद्धव गोपियों को कौन - सा संदेश देता है?
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Answer:जब गोपियों को ज्ञात हुआ कि उद्धव भगवान श्रीकृष्ण का संदेश लेकर आये हैं, तब उन्होंने एकान्त में मिलने पर उनसे श्यामसुन्दर का समाचार पूछा। उद्धव ने कहा- "गोपियों! भगवान श्रीकृष्ण सर्वव्यापी हैं। वे तुम्हारे हृदय तथा समस्त जड़-चेतन में व्याप्त हैं। उनसे तुम्हारा वियोग कभी हो ही नहीं सकता। उनमें भगवद बुद्धि करके तुम्हें सर्वत्र व्यापक श्रीकृष्ण का साक्षात्कार करना चाहिये।" प्रियतम का यह सन्देश सुनकर गोपियों को प्रसन्नता हुई तथा उन्हें शुद्ध ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्होंने प्रेम विह्वल होकर कृष्ण के मनोहर रूप और ललित लीलाओं का स्मरण करते हुए अपनी घोर वियोग-व्यथा प्रकट की तथा भावातिरेक की स्थिति में कृष्ण से ब्रज के उद्धार की दीन प्रार्थना की। परन्तु श्रीकृष्ण का सन्देश सुनकर उनका विरह ताप शान्त हो गया। उन्होंने श्रीकृष्ण भगवान को इन्द्रियों का साक्षी परमात्मा जानकर उद्धव का भली-भाँति पूजन और आदर-सत्कार किया। उद्धव कई महीने तक गोपियों का शोक-नाश करते हुए ब्रज में रहे। गोपियों ने कहा- "उद्धवजी! हम जानती हैं कि संसार में किसी की आशा न रखना ही सबसे बड़ा सुख है, फिर भी हम श्रीकृष्ण के लौटने की आशा छोड़ने में असमर्थ हैं। उनके शुभागमन की आशा ही तो हमारा जीवन है। यहाँ का एक-एक प्रदेश, एक-एक धूलिकण श्यामसुन्दर के चरण चिह्नों से चिह्नित है। हम किसी प्रकार मरकर भी उन्हें नहीं भूल सकती हैं।" गोपियों के अलौकिक प्रेम को देखकर उद्धव के ज्ञान अहंकार का नाश हो गया। वे कहने लगे- "मैं तो इन गोप कुमारियों की चरण रज की वन्दना करता हूँ। इनके द्वारा गायी गयी श्रीहरि कथा तीनों लोकों को पवित्र करती है। पृथ्वी पर जन्म लेना तो इन गोपांगनाओं का ही सार्थक है। मेरी तो प्रबल इच्छा है कि मैं इस ब्रज में कोई वृक्ष, लता अथवा तृण बन जाऊँ, जिससे इन गोपियों की पदधूलि मुझे पवित्र करती रहे।" गोपियों की कृष्णभक्ति से उद्धव इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने गोपियों की चरण रज की वन्दना की तथा इच्छा प्रकट की कि- "मैं अगले जन्म में गोपियों की चरण रज से पवित्र वृन्दावन की लता, औषध, झाड़ी आदि बनूँ।" इस प्रकार कृष्ण के प्रति ब्रजवासियों के प्रेम की सराहना करते हुए तथा नन्दादि, गोप तथा गोपियों से कृष्ण के लिए अनेक भेंट लेकर वे मथुरा लौट आये।
Answer:जब गोपियों को ज्ञात हुआ कि उद्धव भगवान श्रीकृष्ण का संदेश लेकर आये हैं, तब उन्होंने एकान्त में मिलने पर उनसे श्यामसुन्दर का समाचार पूछा। उद्धव ने कहा- "गोपियों! भगवान श्रीकृष्ण सर्वव्यापी हैं। वे तुम्हारे हृदय तथा समस्त जड़-चेतन में व्याप्त हैं। उनसे तुम्हारा वियोग कभी हो ही नहीं सकता। उनमें भगवद बुद्धि करके तुम्हें सर्वत्र व्यापक श्रीकृष्ण का साक्षात्कार करना चाहिये।" प्रियतम का यह सन्देश सुनकर गोपियों को प्रसन्नता हुई तथा उन्हें शुद्ध ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्होंने प्रेम विह्वल होकर कृष्ण के मनोहर रूप और ललित लीलाओं का स्मरण करते हुए अपनी घोर वियोग-व्यथा प्रकट की तथा भावातिरेक की स्थिति में कृष्ण से ब्रज के उद्धार की दीन प्रार्थना की। परन्तु श्रीकृष्ण का सन्देश सुनकर उनका विरह ताप शान्त हो गया। उन्होंने श्रीकृष्ण भगवान को इन्द्रियों का साक्षी परमात्मा जानकर उद्धव का भली-भाँति पूजन और आदर-सत्कार किया। उद्धव कई महीने तक गोपियों का शोक-नाश करते हुए ब्रज में रहे। गोपियों ने कहा- "उद्धवजी! हम जानती हैं कि संसार में किसी की आशा न रखना ही सबसे बड़ा सुख है, फिर भी हम श्रीकृष्ण के लौटने की आशा छोड़ने में असमर्थ हैं। उनके शुभागमन की आशा ही तो हमारा जीवन है। यहाँ का एक-एक प्रदेश, एक-एक धूलिकण श्यामसुन्दर के चरण चिह्नों से चिह्नित है। हम किसी प्रकार मरकर भी उन्हें नहीं भूल सकती हैं।" गोपियों के अलौकिक प्रेम को देखकर उद्धव के ज्ञान अहंकार का नाश हो गया। वे कहने लगे- "मैं तो इन गोप कुमारियों की चरण रज की वन्दना करता हूँ। इनके द्वारा गायी गयी श्रीहरि कथा तीनों लोकों को पवित्र करती है। पृथ्वी पर जन्म लेना तो इन गोपांगनाओं का ही सार्थक है। मेरी तो प्रबल इच्छा है कि मैं इस ब्रज में कोई वृक्ष, लता अथवा तृण बन जाऊँ, जिससे इन गोपियों की पदधूलि मुझे पवित्र करती रहे।" गोपियों की कृष्णभक्ति से उद्धव इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने गोपियों की चरण रज की वन्दना की तथा इच्छा प्रकट की कि- "मैं अगले जन्म में गोपियों की चरण रज से पवित्र वृन्दावन की लता, औषध, झाड़ी आदि बनूँ।" इस प्रकार कृष्ण के प्रति ब्रजवासियों के प्रेम की सराहना करते हुए तथा नन्दादि, गोप तथा गोपियों से कृष्ण के लिए अनेक भेंट लेकर वे मथुरा लौट आये।