उद्योग की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक कोन कोन से है
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उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण भौगोलिक कारक निम्नलिखित हैं:
कच्चा मालः किसी भी उद्योग के विकास हेतु कच्चे माल की उपलब्धता प्राथमिक आवश्यकता होती है। वस्तुतः कभी-कभी औद्योगिक उद्यमों की अवस्थिति कच्चे माल की अवस्थिति से निर्धारित होती है तथापि अन्य गौण कारक यथा परिवहन की सुविधा बाजार की अवस्थिति एवं कच्चे माल का भारक्षय चरित्र भी इसकी अवस्थिति को संशोधित करते हैं।
विद्युतः उद्योगों की अवस्थिति के लिये नियमित विद्युत आपूर्ति पूर्व शर्त हैं। कोयला, खनिज तेल और जल विद्युत, विद्युत के तीन महत्त्वपूर्ण परंपरागत स्रोत हैं। लौह और इस्पात उद्योग जो कि विद्युत स्रोत के लिये बड़ी मात्रा में कोकिंग कोयले पर निर्भर करता है, वह कोयला क्षेत्रों से जुड़ा रहता है।
श्रमः श्रम आपूर्ति दो आधारों पर महत्त्वपूर्ण है-
अक्सर ही बड़ी संख्या में कामगारों की आवश्यकता होती है
कुशल और तकनीकी क्षमता से युक्त लोगों की आवश्यकता होती है। हमारे देश में आज भी आधुनिक उद्योग में मशीनीकरण में वृद्धि के बजाए बड़ी संख्या में कामगारों की आवश्यकता है।
परिवहनः कच्चे माल को पहुँचाने के लिये भूमि या जल से परिवहन आवश्यक होता है, साथ ही अंतिम उत्पादों के विपणन के लिये यह आवश्यक होता है। भारत में रेलवे के विकास ने बंदरगाह शहरों को आंतरिक प्रदेशों से जोड़कर कोलकाता, मुंबई और चेन्नई के इर्द-गिर्द कई उद्योगों की स्थापना सुनिश्चित की।
बाजारः जब तक अंतिम वस्तु की बाजार तक पहुँच नहीं होती है तब तक विनिर्माण की संपूर्ण प्रक्रिया निरर्थक है। विनिर्माण वस्तुओं के त्वरित निष्पादन के लिये बाजार से निकटता आवश्यक है। यह परिवहन लागत को कम करने में सहायक होता है और उपभोक्ता वस्तुओं को सस्ती दर पर प्राप्त कर सकते हैं।
जलः जल उद्योगों के लिये एक अन्य महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। इसी कारण अनेक उद्योग नदियों, नहरों और झीलों के निकट अवस्थित हैं। लौह और इस्पात उद्योग, वस्त्र उद्योग और रासायनिक उद्योग को व्यवस्थित तरीके से कार्य संचालन के लिये बड़ी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है।
स्थलः औद्योगिक विकास के लिये स्थल की आवश्यकता महत्त्वपूर्ण होती है। सामान्यतः स्थल समतल होने चाहिये और वहाँ पर पर्याप्त परिवहन सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिये। कारखानों के निर्माण के लिये व्यापक क्षेत्रों की आवश्यकता होती है। अब ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों को स्थापित करने की प्रवृत्ति बनती जा रही है क्योंकि नगरीय केन्द्रों में भूमि की लागत अत्यधिक हो गयी है।
जलवायुः किसी स्थान पर उद्योगों की स्थापना में जलवायु महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उद्योगों की स्थापना के लिये जटिल जलवायु अधिक उपयुक्त नहीं होती है। अत्यंत उष्ण, आर्द्र, शुष्क या शीत जलवायु में कोई औद्योगिक विकास नहीं हो सकता है। उत्तर-पूर्वी भारत की चरम जलवायु उद्योगों के विकास को बाधित करती है। इसके विपरीत पश्चिमी तटीय क्षेत्र की शांत जलवायु उद्योगों के विकास के अनुकूल है।
अतः तमाम लाभ-हानि के कारणों को ध्यान में रखते हुए एक सही अवस्थिति का चुनाव निर्णायक होता है।