उद्योगों के प्राथमिक क्षेत्र कौन से हैं, असंगठित क्षेत्र के उद्योग क्या होते हैं?
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pta nhi yrr ki udyogo kr
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उद्योगों के प्राथमिक क्षेत्र असंगठित क्षेत्र के उद्योग
Explanation:
प्राथमिक क्षेत्र: (अर्थव्य्वस्था का वह क्षेत्र है जो प्राकृतिक संसाधनों का सीधा उपयोग करता है। इसमें कृषि, वानिकी, मछली पकड़ना और खनन भी शामल हैं। इसके विपरीत, द्वितीयक क्षेत्र वस्तुओं का विनिर्माण करता है और तृतीयक सेवाएं प्रदान करता है। प्राथमिक क्षेत्र आमतौर पर कम विकसत देशों में सबसे महवपूर्ण होता है जबकि औद्योगिक देशों में प्रायः कम महवपूर्ण है।
विनिर्माण उद्योग जो क कचे माल को पैक या शुधकरण करते ह उह प्राथमिक के करब ह माना जाता है , खासकर अगर कचा माल ब के लए या लंबी दूर के परवहन के लए अनुपयुत है।
प्राथमिक उद्योग विकासशील देश म एक बड़ा है; उदाहरण के लए, पशुपालन जापान क तुलना म अका म आम है।19 वीं सद के साउथ वेस म खनन कैसे एक अथयवथा गतवध के एक फाम पर भरोसा करने के लए आ सकता है के एक मामले का अययन दान करता है।
कृषि : विकसित देश म प्राथमिक उद्योग तकनीक प से अधक उनत बन गया है , उदाहरण के लए, खेती म हाथ उठा और रोपण क जगह मशीनीकरण का उपयोग। अधक वकसत अथयवथाओं म प्राथमिक उपादन के साधन के लए अतरत पूंजी का नवेश कया गया है। एक उदाहरण के प म संयुत राय अमेरका म मकई बेट म गठबंधन लवनेवाल , मका क खेती करते ह औ णाल से बड़ी माा म कटनाशक को वतरत करते ह िजसके फलवप कम पूंजी गहन तकनीक के बावजूद एक उच उपज पाई जा सकती है। तकनीक विकास व नवेश क वजह से प्राथमिक म कम कमचारय क आवयकता होती है और इसी के कारण वकसत देश म प्राथमिक म काम कर रहे कमचारय क संया कम होती है। इन देश म वतीयक और तृतीयक म काम करने वाले कमचारय क संया यादा होती है।
वकसत देश को अतरत धन के कारण उनके प्राथमिक उद्योग को बनाए रखने और आगे भी वकसत करने के लए अनुमत द जाती है। उदाहरण के लए, यूरोपीय संघ के कृष सिसडी, अिथर मुाफत दर और कृष उपाद के मूय के लए बफ़स दान करते ह। यह वकसत देश को असाधारण कम कमत पर अपने कृष उपाद का नयात करने म सम करता है। यह उह बेहद गरब या अवकसत देश है के खलाफ तपध बनाता है जो क मुत बाजार क नीतय और कम या न के बराबर टैरफ रखते हैं मुकाबला करने के लए। इस तरह के मतभेद, वकसत अथयवथाओं म अधक कुशल उपादन, कृष मशीनर, कसान को बेहतर जानकार उपलध है, (और असर बड़े पैमाने पर) , के कारण आते ह।
असंगठित क्षेत्र : इस क्षेत्र में वे सारे संस्थान आते हैं जो 1948 के फैक्टरी एक्ट के अंतर्गत नहीं आते हैं अर्थात (अ) जो बिजली का उपयोग नहीं करते और (20 तक) अधिक लोगों को काम देते हैं। इस ‘अवस्थित’ या अनौपचारिक’ उद्योग है, इसलिए इनसे सम्बन्धित तथ्य इकट्ठा करना बहुत मुशिकल है। परन्तु (उद्योगवार या क्षेत्रवार) फुटकर संस्थानों का थोड़ा गहरा अध्ययन करने से समान्य परिस्थिति की एक झलक सामने आ सकती है। ऐसे कई अध्ययनों से इस तथ्य की पुष्टि हुई है कि इन क्षेत्रों में बच्चों का बेहद शोषण होता है और बाल श्रम का प्रमाण भी बहुत अधिक है, जैसे-उनके काम की मजदूरी लगभग न के बराबर होती है, उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों में, कभी-कभी तो बड़ी ही खतरनाक स्थिति में काम करना पड़ता है, काम का और सोने का स्थान प्रायः एक ही होता है, उनके साथ बड़ा ही दुर्व्यवहार किया जाता है। फिर भी काम से हटा दिए जाने की आशंका के कारण वह सब उन्हें सहना पड़ता है। उन बच्चों की शारीरिक और मानसिक सहिष्णुता की पूरी-पूरी परीक्षा हो जाती है। (देखे सुमंत बनर्जी, चाइल्ड लेबर इन इंडिया, 1979’ चाईल्ड लेबर इन डेल्ली/बाम्बे, इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर रीजनल डेवलपमेंट स्टडीज ,1979. स्मितु कोठारी, चाइल्ड लेबर इन शिवकाशी, ई.पी. डबल्यू, 198 3, आदि) इस क्षेत्र में बच्चों को काम देने वाले संस्थानों के आकार-प्रकार और उनके काम अनेक प्रकार के हैं, जिनमें से कुछ ये हैं घरेलू कामकाज, मोटर वर्कशाप, परचून की दुकानें, साईकिल मरम्मत, छपाई प्रेस और सभी प्रकार की छोटी दुकानें। (लीला दुवे 1881-८४) इस क्षेत्र के कामों को मुख्यतः तीन श्रणियों में बांटा जा सकता है।
- दूसरों के लिए काम करना।
- घरेलू इकाइयों/उद्योगों में काम
- अपने लिए काम करना (स्वयं रोजगार
बच्चों को काम देने वाला एक बड़ा क्षेत्र है। ‘निर्माण उद्योग’ (कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री) इसमें आमतौर पर करार पूरे परिवार के साथ किया जाता है, जिसमें पति-पत्नीं और बच्चे सबसे काम की अपेक्षा रहती है, कुछ निश्चित अवधि के लिए किसी एकमुश्त रकम पर यह करार होता है (बनर्जी ऍस.1979:187) भारत में ऐसे परिवार अक्सर आव्रजक (दूसरे प्रदेशों में जा बसे) परिवार ही होते हैं और काम पाने का उनका एकमात्र जरिया ठेकेदार या जमादार हुआ करते हैं। वे उन्हें लगभग बंधुआ जैसे हालत में रखते हैं। इस तरह के श्रमिकों के शोषण का जबरदस्त नमूना 188२ में एशियाड सम्बन्धी निर्माण कार्य में देखने को मिला। बताया गया कि अलग-अलग निर्माण कार्यों में लगभग एक लाख प्रवासी मजदूर कम कर रहे थे जिनमें औरतें और बच्चे भी बड़ी मात्रा में थे। ‘ये सब राजस्थान, उत्तर प्रद्रेश, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और केरल जैसे दूर-दूर के प्रदेशों में भी आये हुए थे—उनकी मजदूरी बहुत कम तो थी ही, काम के समय हुई दुर्घटना का और मृत्यु का मुआवजा उन्हें नहीं दिया गया।