उद्यामिता के कोई पाँच महत्व बताइए?
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उधमिता विकास एवं इसका महत्व
भारत की जनसंख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। फलस्वरूप, खाधान्न की समस्या और बढ़ती महंगार्इ के कारण बड़े परिवारों का सुचारू रूप से पालन पोषण करना एक ही कमाउ आदमी के बस की बात नहीं रह गर्इ है। यदि ग्रामीण आंचल में झांके तो हम पाते हैं, कृषि में ग्रामीण युवाओं को वर्षभर काम नहीं मिल पाता जिसके फलस्वरूप उन्हें अद्र्धबेरोजगारी की समस्या का समाना करना पड़ता है। गाँव स्तर पर रोजगार की अनुपब्लधता की वजह से ग्रामीण युवा प्राय: गांव को छोड़ कर आस-पास के शहरों में रोजगार की तलाश में चले जाते हैं, जहाँ उन्हें कर्इ कठिनार्इयों का सामाना करना पड़ता है। बेरोजगारी की समस्या के निदान हेतु ज्यों-ज्यों दवा दी गर्इ मर्ज बढ़ता गया। बेरोजगारी आज इस स्तर हद तक बढ़ गर्इ की युवा वर्ग ऐसी नौकरी करने को मजबूर होते हैं जिसमें उनका शोषण एवं उनके साथ अन्याय होता है। फलत: उनमें कुंठायें घर कर जाती है। युवाओं की इस विवशता का लाभ असमाजिक तत्व उठाते हैं एवं अपराधवृतियुक्त माफिया समुह ऐसे युवाओं को अपने चक्र में फसा कर उन्हें भी अपराधी बना देते हैं। इस दल-दल में फसने के बाद युवाओं के लिए इससे निकलना असंभव होता है एवं अपराध की नारकीय जीवन में सांस लेने को विवश रहते हैं और हिंसा की दुनियाँ में किसी न किसी रूप में हिंसा का शिकार होकर इस दुनियां को अलविदा कर जाते हैं।
भारतीय युवाओं की नौकरी करने की जड़ मानसिकता रोजगार की समस्या को और विकराल बना दिया है। सभी को नौकरी मिलना असंभव है। इन विषम परिसिथतियों में एक ही रास्ता है जो की सारी समस्याओं का निदान कर सकता है, वह है उधमिता विकास। अत: आज आवश्यकता इस बात की है कि हमारे युवावर्ग एक सफल उधमी का सपना संजोए और रोजगार के लिए दुसरों की ओर न देखे बलिक खुद दुसरों को रोजगार देने वाले बनें। इसके लिए युवावर्ग को तकनीकी क्षेत्र में आगे आकर दक्षता हासिल करना जरूरी है। तकनीकी क्षेत्रों में फल-सब्जी परिरक्षण एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। ग्रामीण तथा शहरी युवावर्ग इस क्षेत्र में प्रशिक्षणों द्वारा व्यवाहरिक ज्ञान व अनुभव प्राप्त करके खुद का रोजगार कर सकते हैं।
उधमी एवं उधमिता विकास -
उधमिता विकास के लिए आवश्यक है कि हम अपने अंदर उधमी व्यकित के गुणों को बढ़ायें। उधमी एक क्रियाशील प्राणी है जो विशेष कार्य, खासतौर उधम संबंधित कार्य को क्रियानिवत करने का पहल करता है। उधमी बनना एक व्यकितगत कौशल है जिसका संबंध न जाति, न धर्म, न समुदाय से रहता है। उधमी बनने में स्वयं व्यकित की अहम भूमिका होती है। ऊँची उपलबिध की चाह रखने वाला व्यकित उधमी बनने का रास्ता स्वत: खोज लेता है। वास्तव में प्रत्येक व्यकित को उधमी बनने के लिए प्रेरणा की जरूरत होती है उसे यह प्रेरणा बचपन से दी जाती है या विशेष प्रशिक्षण द्वारा दी जा सकती है। सामाजिक आर्थिक कारक व्यकित की उधमिता भावना को बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। युवाओं की तकदीर बदलने के लिए उनमें उधमिता की भावना का विकास करना बहुत जरूरी है। इसके लिए नियोजित ढंग से ठोस कदम उठाने होंगे। उधमिता की भावना पनपाने के लिए ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में युवाओं को संगठित करके उनके बीच जा कर उधमिता के संबंध में चर्चा करनी होगी। इसके महत्व एवं आवश्यकता से उन्हें परिचित कराना होगा। अभिभावकों को अपने बच्चों में बचपन से ही उधमी बनने की ललक पैदा करना होगा। इसके लिए अभिभावकों के सोच को बदलना होगा। अभिभावकों को यह समझना होगा आज के बदले परिवेश में अपने लाडले के लिए नौकरी नहीं वरण सफल उधमी बनने के सपने संजोए। उधमिता विकास के लिए यह आवश्यक है कि हम अपने युवाओं तक उधमों से संबंधित नया ज्ञान, नर्इ सूचनाऐं एवं आवश्यक जानकारियाँ पहुँचायें ताकि वे आय परक बातों को सोच सकें। उधमिता विकास के लिए युवाओं में उधमी बनने के गुणों को निखारना होगा, संवारना होगा व विकास करना होगा। उधमिता विकास के लिए कुछ आवश्यक गुण इस प्रकार हैं -
उपलबिध की चाह
जोखिम उठाने की प्रवृति
सकारात्मक रवैया
पहल करना
भविष्य के प्रति आशावान
समस्याओं का समाधान करने की प्रवृति
वातावरण को विश्लेषित करने की इच्छा
लक्ष्य निर्धारण की चाह
प्रयासरत रहना
सूचनाओं को संकलित करने क चाह
अवसरों को देख उन पर कार्य करना
अनुनय करना
कार्यों एवं प्रतिफल की जिम्मेवारी लेना
अपने अनुभवों से सीखना
निश्चयात्मक ढंग से कहना
कार्यों का अनुश्रवण करना इत्यादि।
उधमिता विकास का महत्व -
आज के युग में उधमिता विकास का काफी महत्व है एवं यह आज की आवश्यकता है। उधमिता विकास के महत्व को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत आंक सकते हैं।
मानव संसाधन का सशकितकरण
सामाजिक प्रतिष्ठा
गरीबी में कमी
रोजगार की उपलब्धता
बेरोजगारी की समस्या में कमी
राष्ट्रीय उत्पादकता में वृद्धि